उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में एक से बढ़कर एक चौंकाने वाले प्रत्याशी सामने आए हैं. कहीं ब्यूटी क्वीन तो कहीं उम्र की अंतिम दहलीज पर भी चुनाव के मैदान में उतरे प्रत्याशियों को हर किसी ने देखा. लेकिन वाराणसी के चौबेपुर के छितौनी के रहने वाले संतोष मूरत ने भी इन सब पर बाजी मार ली. क्योंकि कागजों में मुर्दा हो चुके संतोष ने अब जिला प्रशासन की नींद तोड़ने के लिए पंचायत चुनाव लड़ने की तैयार कर ली है.
संतोष अपने जिंदा होने की लड़ाई पिछले 20 सालों से लड़ रहे हैं. चौबेपुर के छितौनी गांव के रहने वाले संतोष ने बीडीसी चुनाव का नामांकन भर दिया है. संतोष का कहना है कि भीख मांगकर चुनाव में नामांकन भरने के लिए पैसे जुटाए और प्रस्तावक भी भीख मांगकर मिला है. इसके अलावा उन्होंने बताया कि न्याय की भीख 20 साल से मांगकर थक चुके हैं. मानवाधिकार आयोग ने उनके मामले में वाराणसी के डीएम को तलब भी किया है, जिससे उन्हें कुछ उम्मीद बंधी है.
संतोष ने बताया कि वो लोकसभा और विधानसभा में भी नामांकन किया था. लेकिन वो हर बार रिजेक्ट हो गए. लेकिन वो 2017 में विधानसभा चुनाव में वाराणसी से लड़ चुके हैं. बावजूद इसके बदलती सरकार और ट्रांसफर होते अधिकारियों के आश्वासन के बावजूद वो अब तक सरकारी फाइलों में मृत ही हैं. संतोष का कहना है कि वो यह चुनाव इसलिए लड़ रहें हैं, क्योंकि उन्हें खुद को जिंदा साबित करना है. संतोष मूरत सिंह की लड़ाई में वो अब अकेले नहीं हैं, बल्कि कई युवा अब उनका साथ देने के लिए आग आए हैं. वाराणसी के रहने जितेंद्र बताते हैं कि जब से उन्हें संतोष के बारे में पता चला है तो अब वो उनके संघर्ष में उनके साथ हैं. संतोष दो दशक से सरकारी कागज में मृत हैं और इनकी जमीन पर पाटीदार ने कब्जा कर रखा है. इनके जज्बे को देखते हुए हम आगे आकर इनकी मदद कर रहें हैं. इनके क्षेत्र में जाकर चुनाव के लिए प्रचार-प्रसार भी करेंगे.
बता दें, संतोष बॉलीवुड एक्टर नाना पाटेकर के रसोइया के तौर पर उनके साथ लंबे समय तक जुड़े रहे. साल 2003 में जब वो मुंबई से अपने गांव लौटे तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई. संतोष के मुताबिक पाटीदारों ने उन्हें कागजों पर मृतक दिखाकर 12.5 एकड़ जमीन हड़प ली. उन्होंने जिला प्रशासन से जुडे सभी अधिकारियों से गुहार लगाई लेकिन उनकी कोई बात नहीं बनी. इसलिए अब उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला किया है.