अमेरिका और तालिबान अपने साझा दुश्मन इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत (आईएसआईएस-के) के खात्मे के लिए हाथ मिला सकते हैं। अफगानिस्तान में काबुल हवाईअड्डे पर आईएस-खुरासान के आत्मघाती हमले के पहले से ही इस योजना पर काम चल रहा है। अमेरिका आगे की रणनीति में अफगानिस्तान की सरजमीं से आईएस-खुरासान के साथ अलकायदा को भी निपटाने की कोशिश में है। आतंकवाद के खिलाफ जंग में क्वाड देशों की साझेदारी के तहत भारत भी इस मुहिम का हिस्सा बन सकता है।
फिलहाल क्वाड देश शीर्ष स्तर पर इस बावत खुफिया जानकारी साझा कर रहे हैं। शुक्रवार देर रात आईएस-खुरासान के खिलाफ अमेरिका की त्वरित सैन्य कार्रवाई इन्हीं कोशिशों का नतीजा बताया जा रहा है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियां इन हालात के देश में पड़ने वाले असर की आशंका के मद्देनजर क्वाड के साथ नाटो देशों की एजेंसियों के साथ भी लगातार संपर्क में हैं। बृहस्पतिवार को अफगानिस्तान पर हुई सर्वदलीय बैठक के बाद से विदेश, रक्षा और खुफिया विभाग के उच्च अधिकारी अफगानिस्तान में तेजी से बदल रहे समीकरणों की लगातार समीक्षा कर रहे हैं।
उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक, क्वाड और नाटो देशों के लिए आईएस और अल कायदा फिलहाल तालिबान के अलग अलग धड़ों के मुकाबले ज्यादा बड़ा खतरा हैं। नाटो देश 31 अगस्त तक अफगानिस्तान की जमीन पूरी तरह खाली कर देंगे। काबुल हवाईअड्डा भी तालिबान के कब्जे में आ जाएगा। ऐसे में आईएस और अल कायदा के खिलाफ तालिबान को और मजबूत करने की रणनीति का ब्लू प्रिंट तैयार हो चुका है। सूत्रों ने बताया कि तालिबान इस्लाम के हनाफी मत को मानता है जबकि आईएस-खुरासान सलाफी परंपरा से अपनी प्रेरणा लेता है। अन्य तकनीकी कारणों से साथ इस वजह से भी आईएस-खुरासान तालिबान का पुराना दुश्मन है। उधर पूरी दुनिया में खलीफा राज कायम करने में लगा आईएस पश्चिमी देशों का कट्टर विरोधी है। एजेंसियों का मानना है कि इस बिसात पर अल कायदा के बचे हुए तंत्र को मजबूत करने के लिए पाकिस्तान और चीन ने भी नए मोहरे तैयार करना शुरू कर दिया है।