पाकिस्तान (Pakistan) में अल्पसंख्यकों (Minorities), खास तौर पर हिन्दू (Hindu) और सिखों (Sikhs) पर अत्याचार की खबरों आए दिन आती रहती हैं. लेकिन पड़ोसी मुल्क में मुस्लिमों (Muslims) का भी एक तबका ऐसा है जिसके साथ लगातार वहां की सरकार जुल्म करती आई है. पंजाब प्रांत के दसका में प्रशासन ने अहमदिया (Ahmadis) मुस्लिमों की 70 साल पुरानी एक मस्जिद (mosque) के ढहा (demolished) दिया जिसका निर्माण देश के पहले विदेश मंत्री जफरुल्लाह खान ने कराया था. यह मस्जिद अहमदिया समुदाय का प्रमुख धार्मिक स्थल माना जाती थी. नोटिस देने के दो दिन बाद बीते गुरुवार को इसे अवैध बताकर तोड़ दिया गया. प्रशासन का कहना है कि इस मस्जिद की वजह से सड़क पर करीब 13 फीट तक अतिक्रमण हो रखा था.
आजादी से पहले हुआ था निर्माण
इस मस्जिद का निर्माण अहमदिया समुदाय से आने वाले जफरुल्लाह खान ने कराया था, जो 1947 से 1954 तक पाकिस्तान के पहले विदेश मंत्री रहे. बंटवारे से पहले उन्होंने वकील के तौर पर अहमदिया मुस्लिमों के हक में आवाज उठाई. साथ ही कई ऐतिहासिक फैसलों में उनकी अहम भूमिका रही. इस मस्जिद का निर्माण उन्होंने अपने पैतृक शहर दसका, सियालकोट में कराया था, जो 1947 में पाकिस्तान की आजादी से पहले से स्थापित थी.
अहमदिया समुदाय के लोग 15 जनवरी को नोटिस के तहत अतिक्रमण वाली 13 फीट की जगह को हटाने को तैयार थे, बावजूद इसके प्रशासन ने आनन-फनन में ढांचे को गिरा दिया. अब समुदाय के लोगों का कहना है कि गिराया गया ढांचा बंटवारे से पहले का बना था और पुलिस की मौजूदगी में उसे गिराया गया. उन्होंने बताया कि रात के वक्त मस्जिद और आस-पास के इलाके की बिजली काट दी गई और और ढांचे को गिराने का काम किया गया.
अहमदियों पर लगातार अत्यचार
‘डॉन’ के मुताबिक पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिमों के उत्पीड़न का ये सबसे ताजा मामला है. इससे पहले साल 2024 के दौरान सिर्फ पंजाब प्रांत में ही अहमदियों के 20 से ज्यादा धार्मिक स्थलों को निशाना बनाकर गिराया जा चुका है. समुदाय के लोगों ने निराशा जाहिर करते हुए आरोप लगाया कि सरकार चरमपंथी लोगों से हमारी हिफाजत करने की बजाय अहमदी मस्जिदों को तोड़ने में लगी है. जमात अहमदिया पाकिस्तान के प्रवक्ता आमिर महमूद ने सरकार पर अहमदिया प्रॉपर्टी को लगातार निशाना बनाने और उनकी शिकायतों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है. उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान की आजादी से पहले जफरुल्लाह खान के परिवार की ओर से बनवाई गई इस मस्जिद के मूल ढांचे में कोई बदलाव या विस्तार नहीं किया गया था, ऐसे में अतिक्रमण का कोई सवाल ही नहीं उठता.
पाकिस्तान का कानून अहमदियों को मुसलमान नहीं मानता और सरकार ने 1974 में एक संविधान संशोधन लाकर अहमदिया समुदाय को गैर मुस्लिम करार दे दिया था. इसके बाद से लगातार पाकिस्तान में अहमदियों पर जुल्म हो रहे हैं और उनके धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है. पाकिस्तान ही नहीं, भारत में भी अहमदिया समुदाय कट्टरपंथियों के निशाने पर रहता है और मुस्लिम समाज इन्हें अपनाने को तैयार नहीं है.
क्यों नहीं अपनाता मुस्लिम समाज
अहमदिया समुदाय की शुरुआत मिर्जा गुलाम अहमद ने की थी, जिनका जन्म पंजाब के कादियान में हुआ था. इस वजह से कई अहमदिया खुद को कादियानी भी कहते हैं. साल 1889 में गुलाम अहमद ने लुधियाना में खुद को खलीफा घोषित कर दिया. इसके बाद से ही कई लोग उनके अनुयायी हो गए और धीरे-धीरे अहमदिया जमात बढ़ती चली गई. ये समुदाय सुन्नी मुस्लिमों की ही सब कैटेगरी है, जो खुद को मुसलमान मानते हैं, लेकिन मोहम्मद साहब को आखिरी पैगंबर नहीं मानते.
समुदाय मिर्जा गुलाम अहमद को अपना गुरु मानता है और इस बात में यकीन रखता है कि वही मोहम्मद के बाद उनके नबी या मैसेंजर हुए थे. पूरी दुनिया में इस्लाम को मानने मुसलमान मोहम्मद को ही आखिरी पैगंबर मानते रहे. यही बात अहमदियों को बाकी मुस्लिमों से अलग बनाती है. पाकिस्तान के मुस्लिम तो इन्हें काफिर मानते हैं. इसके अलावा और भी कई मुस्लिम देशों में अहमदियों को मुसलमान नहीं माना जाता.
हज जाने तक पर पाबंदी
पूरी दुनिया में मुस्लिम आबादी का करीब एक फीसदी हिस्सा अहमदियों का है, जिनकी कुल संख्या 2 करोड़ के आस-पास मानी जाती है. अकेले पाकिस्तान में ही 50 लाख के करीब अहमदिया मुस्लिम रहते हैं. इसके बाद नाइजारिया और तंजानिया जैसे देशों का नंबर आता है. पाकिस्तान और भारत जैसे देशों में विरोध झेल रहे इस समुदाय को अफ्रीकी देशों में इतनी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता. दूसरी तरफ सऊदी अरब भी इन्हें मुस्लिम नहीं मानता, यही वजह है कि इस समुदाय के हज जाने पर भी पाबंदी है. अगर कोई अहमदी हज के इरादे से सऊदी जाता भी है तो उसे वहां से वापस भेज दिया जाता है.