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सुप्रीम कोर्ट ने एडीजे के विरुद्ध हाईकोर्ट की प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाया

दिल्ली के एक अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीजे) सोनू अग्निहोत्री के विरुद्ध हाई कोर्ट की प्रतिकूल टिप्पणियों को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रिकार्ड से हटा दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलीय अदालतों को न्यायिक अधिकारियों के व्यक्तिगत आचरण पर टिप्पणी करने में संयम बरतना चाहिए।

एडीजे ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी

जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस अगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने कहा कि जज भी मनुष्य होते हैं और उनसे भी गलतियां हो सकती हैं। लेकिन इन गलतियों को व्यक्तिगत आलोचना किए बिना ठीक किया जाना चाहिए। एडीजे ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी जिसने अपनी टिप्पणियों को हटाने से इनकार कर दिया था।

अदालतों के पास त्रुटियों को सुधारने का अधिकार

इन टिप्पणियों में एडीजे के आचरण को न्यायिक दुस्साहस करार दिया गया था और उन्हें सावधानी व सतर्कता बरतने की सलाह दी गई थी। हाई कोर्ट ने ये टिप्पणियां एडीजे अग्निहोत्री द्वारा चोरी के एक मामले में जारी अग्रिम जमानत याचिका पर आदेश के संबंध में की थीं। न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि अपीलीय या पुनरीक्षण अदालतों के पास त्रुटियों को सुधारने का अधिकार है, लेकिन ऐसी आलोचना को न्यायिक आदेशों की खूबियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और व्यक्तिगत निंदा से बचना चाहिए।

अधिकारी के करियर की रक्षा करना जज का अधिकार

शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों के व्यक्तिगत आचरण और क्षमता पर प्रतिकूल टिप्पणियों से बचना चाहिए। आलोचना न्यायिक आदेशों में त्रुटियों पर केंद्रित होनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत न्यायाधीश पर। फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि न्यायिक अधिकारियों के आचरण के बारे में चिंताओं को प्रशासनिक पक्ष पर मुख्य न्यायाधीश के ध्यान में लाया जाना चाहिए, प्रक्रियात्मक सुरक्षा सुनिश्चित करना और अधिकारी के करियर की रक्षा करना।

मुद्दों को न्यायिक आदेशों में संबोधित नहीं किया जाना चाहिए

अदालत ने कहा कि किसी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से पारित किए गए सख्त कदम उनके करियर पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं और अनावश्यक शर्मिंदगी का कारण बन सकते हैं। ऐसे मुद्दों को न्यायिक आदेशों में संबोधित नहीं किया जाना चाहिए। फैसले में कहा गया कि न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात में सुधार के प्रयासों के बावजूद अपर्याप्त बना हुआ है। यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 2 मार्च, 2023 के एक आदेश में एडीजे के खिलाफ दर्ज की गई टिप्पणियों से उपजा है।