सीरिया (Syria) के राष्ट्रपति (President) बशर अल-असद (Bashar Al Assad) देश छोड़कर रूस (Russia) भाग गए हैं. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने असद और उनके परिवार को राजनीतिक शरण (political asylum) दे दी है. पहले अटकलें लगाई जा रही थीं कि असद के विमान का रडार से संपर्क टूट गया है और विमान के क्रैश होने की आशंका जताई जा रही थी, लेकिन अब बशर अल-असद के रूस पहुंचने की पुष्टि हो गई है. उधर, सेना ने असद के देश छोड़ने की पुष्टि करते हुए कहा कि राष्ट्रपति की सत्ता खत्म हो चुकी है.
सीरिया में पिछले 11 दिनों से विद्रोही गुटों और सेना के बीच कब्जे के लिए लड़ाई चल रही थी, विद्रोही लड़ाकों ने रविवार को राजधानी दमिश्क पर भी कब्जा कर लिया, वो सड़कों पर गोलीबारी करके जीत का जश्न मना रहे हैं. फ्लाइट ट्रैकर से जानकारी मिली है कि असद का विमान सीरिया के लताकिया से उड़ान भरकर मास्को पहुंच गया है. फ्लाइटरडार वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार, रविवार (8 दिसंबर) को एक रूसी सैन्य विमान लताकिया से उड़ान भरकर मास्को पहुंचा.
रूस ने रविवार को कहा कि सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद ने सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के आदेश देने के बाद पद छोड़ दिया है और अपने देश से चले गए हैं. रूस सीरिया के लताकिया प्रांत में हमीमिम एयर बेस का संचालन करता है, जिसका इस्तेमाल उसने पहले भी विद्रोहियों के खिलाफ हवाई हमले करने के लिए किया है. उधर, सीरिया के सेना ने असद के देश छोड़ने की पुष्टि करते हुए कहा कि राष्ट्रपति की सत्ता खत्म हो चुकी है.
सीरिया की हवाओं में बारूद की गंध
सीरिया की हवाओं में बारूद की गंध घुली हुई है, सड़कों पर जबरदस्त फायरिंग हो रही है, सीरिया में विद्रोही बेकाबू हो गए हैं. ये वही सीरिया है, जहां खूंखार आतंकी संगठन ISIS ने अपने जड़ें जमाई थीं, अब एक बार फिर वैसा ही खतरा फिर मंडरा रहा है. गुरुवार को सीरियाई विद्रोहियों ने हमा शहर पर कब्जा जमा लिया था, महज हफ्तेभर के भीतर बिजली की रफ्तार से विद्रोहियों ने सीरिया के 2 बड़े शहरों से राष्ट्रपति असद की सेना को खदेड़ दिया है. पहले अलेप्पो और फिर चौथे सबसे बड़े शहर हमा में विद्रोहियों ने अपनी जीत का जश्न मनाया.
विद्रोहियों की ऐतिहासिक जीत
सीरिया में 2011 में विद्रोह शुरू हुआ था, जब असद सरकार ने लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों को क्रूरता से कुचल दिया. यह संघर्ष धीरे-धीरे गृहयुद्ध में बदल गया, जिसमें असद सरकार के खिलाफ कई विद्रोही गुट खड़े हुए. आखिरकार, 13 साल के इस संघर्ष ने असद शासन को झुका दिया. विद्रोही गुटों ने दमिश्क पर कब्जा कर न केवल असद सरकार को उखाड़ फेंका, बल्कि सीरियाई जनता को एक नई शुरुआत का मौका दिया है.
किस देश ने क्या कहा?
संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र के सीरिया के लिए विशेष दूत गेयर पेडरसन ने कहा, “अब यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि सीरिया में एक समावेशी राजनीतिक प्रक्रिया शुरू हो.” उन्होंने यह भी कहा कि सीरिया को अपनी संप्रभुता और स्थिरता बहाल करनी होगी.
इजरायल: इजरायल ने विद्रोहियों की इस जीत को अलग नजरिए से देखा है. इजरायली मंत्री अमिचाई चिकली ने कहा, “सीरिया का अधिकांश हिस्सा अल-कायदा और आईएसआईएस से जुड़े संगठनों के नियंत्रण में है.” इजरायली सेना ने गोलान हाइट्स क्षेत्र में अपनी सुरक्षा बढ़ा दी है.
जर्मनी: जर्मनी की विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक ने बशर अल-असद के पतन को “सीरियाई जनता के लिए बड़ी राहत” बताया. उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि देश को चरमपंथी ताकतों के हाथों में जाने से रोकने की जरूरत है.
चीन: चीन ने इस घटनाक्रम को करीब से देखा है. चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा, “हम सीरिया की स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और उम्मीद करते हैं कि देश में जल्द स्थिरता आएगी.” उन्होंने अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं और दूतावास को मजबूती से कार्यरत बताया.
तुर्की: तुर्की के विदेश मंत्री हाकान फिदान ने इस बदलाव को सीरियाई सरकार के पतन के रूप में देखा. उन्होंने कहा, “सीरिया में सत्ता हस्तांतरण हो रहा है, लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंकवादी संगठन इसका फायदा न उठाएं.”
यमन और अन्य देश: यमन के सूचना मंत्री मुअम्मर अल-इरयानी ने इसे ईरान के विस्तारवादी एजेंडे की विफलता करार दिया. वहीं, फिलीपींस ने सभी संबंधित पक्षों से संयम बरतने और हिंसा से बचने की अपील की.
संयुक्त अरब अमीरात: यूएई के सलाहकार अनवर गर्गाश ने कहा, “गैर-राज्य तत्वों को राजनीतिक शून्य का फायदा नहीं उठाने देना चाहिए.” उन्होंने इस घटना को राजनीतिक विफलता का परिणाम बताया.
सीरिया के भविष्य पर सवाल
हालांकि यह घटना असद शासन के अंत का प्रतीक है, लेकिन सीरिया के लिए चुनौतियां यहीं खत्म नहीं होतीं. देश के सामने राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने, युद्ध से बर्बाद अर्थव्यवस्था को फिर से जीवित करने और विस्थापित नागरिकों को वापस लाने की बड़ी जिम्मेदारी है. इसके अलावा, विद्रोही गुटों के बीच सत्ता-शेयरिंग और चरमपंथी संगठनों के प्रभाव को रोकना भी बड़ी चुनौतियां हैं.