महाराष्ट्र (Maharashtra) के विदर्भ में पिछले 24 घंटों (24 hours) में छह किसानों (Six farmers suicide) ने अपनी जान दे दी। बताया जा रहा है कि आत्महत्या करने वाले सभी किसान गले तक कर्ज में डूबे (neck-deep in debt) हुए थे। महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या प्रकरण में विदर्भ पिछले दो सालों में सबसे आगे है। आत्महत्या करने वाले छह किसानों में से पांच यवतमाल जिले के गांवों से थे जबकि एक वर्धा जिले के एक गांव का रहने वाला था।
महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) के एक निकाय, कृषि मिशन के अध्यक्ष किशोर तिवारी ने जानकारी दी कि जुलाई और अगस्त में भारी बारिश के बाद फसलें बह गई, बदकिस्मत से इन छह किसानों की फसलें भी बह गई, जो इनकी आत्महत्या का कारण बनीं। खरीफ सीजन की शुरुआत में अपने खेतों में फसल बोने के लिए इन किसानों को लोन तक नहीं मिल पाया क्योंकि, पहले ही ये सभी पहले ही गले तक कर्ज में डूबे हुए थे।
यवतमाल के नरसाला गांव में बीते गुरुवार को आत्महत्या करने वाले एक किसान के पिता ने कहा कि बेटे के पास तीन एकड़ कृषि भूमि की देखभाल की जिम्मेदारी थी। वह उसमें कपास और सोयाबीन उगाता था। कहा, “मेरे बेटे ने फसलों की फिर से बुवाई के लिए अस्थायी ऋण के लिए कुछ साहूकारों से संपर्क किया। लेकिन वह धन नहीं जुटा सका और इसके कारण उसने आत्महत्या कर ली।”
अगस्त में 51 किसानों ने मौत को लगाया गले
यवतमाल के जिला कलेक्टर अमोल येगे ने कहा कि अकेले अगस्त में जिले में 51 किसानों की आत्महत्या से मौत हुई है। उन्होंने कहा, हमारे अधिकारी संकटग्रस्त किसानों को सलाह देने और ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए उनसे बातचीत कर रहे हैं। प्रशासन ने जिले में जागरूकता अभियान भी शुरू कर दिया है।
यवतमाल और वर्धा सहित ग्यारह जिलों में फैले विदर्भ क्षेत्र के किसान मुख्य रूप से कपास और सोयाबीन फसलों पर निर्भर हैं। आठ जिलों से सटे मराठवाड़ा क्षेत्र में कपास, जवार और सोयाबीन की खेती होती है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन प्रेरित सूखे और लगातार वर्षों में बेमौसम बारिश के परिणामस्वरूप दोनों क्षेत्रों में किसानों, उनके परिवारों के सदस्यों और साथ ही खेतिहर मजदूर फसलों के बर्बाद होने के कारण आत्महत्या की तरफ रुख कर रहे हैं।
15 साल पहले, केंद्र सरकार ने विदर्भ में कई जिलों को आत्महत्या-प्रवण घोषित किया था। संकट के प्रबंधन के लिए तैनात राज्य के अधिकारी स्वीकार करते हैं कि जलवायु-प्रेरित ऋण के कारण कृषि आय कम रही। किशोर तिवारी के अनुसार, “इस साल जुलाई के अंत और अगस्त में भारी बारिश के बाद हजारों हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि प्रभावित हुई है। राज्य सरकार और विशेष रूप से जिला प्रशासन को स्थिति से निपटने के लिए कमर कसनी चाहिए अन्यथा अधिक संकटग्रस्त किसान इस तरह के चरम उपायों (आत्महत्या) की तरफ बढ़ सकते हैं।”
किसानों तक नहीं पहुंचा सीएम राहत पैकेज
तिवारी ने कहा कि 10 अगस्त को कैबिनेट की बैठक के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा घोषित राज्य सरकार का राहत पैकेज बाढ़ प्रभावित किसानों तक नहीं पहुंचा है। शिंदे ने घोषणा की थी कि सरकार विभिन्न जिलों में भारी बारिश और बाढ़ से प्रभावित किसानों को प्रति हेक्टेयर 13,600 रुपये की वित्तीय सहायता देगी, जो इन जरूरतमंद किसानों तक नहीं पहुंचा।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी भारत में एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड्स रिपोर्ट से पता चला है कि महाराष्ट्र में 2021 में देश भर में कृषि गतिविधियों (खेत मजदूरों, किसानों और किसानों सहित) में लगे लोगों की आत्महत्या से सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं। वहीं, विदर्भ जन आंदोलन समिति, एक किसान वकालत समूह, जिसने 2000 से किसानों की आत्महत्या का दस्तावेजीकरण किया है, के अनुसार, इस साल जनवरी से इस क्षेत्र के 472 किसान अपनी जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं। पिछले साल यह आंकड़ा 912 था।