गोवा के कार्यवाहक मुख्यंत्री प्रमोद सावंत (Pramod Sawant) ने राज्यपाल पी एस श्रीधरन पिल्लई (P.S. Sreedharan Pillai) को पणजी (Panaji) स्थित राजभवन में जाकर अपना इस्तीफा सौंप दिया. प्रमोद सावंत ने कहा, ‘मैंने अपना इस्तीफा सौंप दिया. प्रक्रिया पूरी होने तक राज्यपाल ने मुझे कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनने का पत्र दिया है.’ उन्होंने कहा, ‘अभी 4 राज्यों में शपथ ग्रहण पर फैसला नहीं हुआ है. गोवा में सेंट्रल ऑब्जर्वर के आने के बाद विधायक दल की बैठक होगी और इसके बाद ही तारीख तय की जाएगी.’ 40 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी को 20 सीटों पर जीत मिली है. लेकिन कुछ निर्दलीय विधायकों ने समर्थन की बात कही है.
हालांकि, बीजेपी के कुछ नवनिर्वाचित विधायक महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (MGP) का समर्थन स्वीकार करने के खिलाफ हैं. प्रदेश बीजेपी प्रमुख सदानंद शेत तानावडे ने कहा कि फैसला पार्टी आलाकमान द्वारा लिया जाएगा और वह अगली सरकार बनाने के लिए पार्टी को समर्थन देने के MGP के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया नहीं देना चाहेंगे. बीजेपी सूत्रों ने कहा है कि पोंडा के विधायक रवि नाइक, प्रोल के विधायक गोविंद गौडे और दाबोलिम के विधायक मौविन गोडिन्हो सहित कुछ विधायकों ने MGP को सरकार में शामिल करने पर सख्त आपत्ति जताई. MGP ने हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस (TMC) के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था.
MGP ने की थी समर्थन की पेशकश
गोवा विधानसभा चुनाव के गुरुवार को परिणाम घोषित किए गए. इसमें बीजेपी बहुमत के आंकड़े से केवल एक सीट पीछे रह गई. ऐसे में, MGP ने बीजेपी को समर्थन की पेशकश की. बीजेपी ने विधानसभा 40 में से 20 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि MGP ने दो सीटों पर जीत दर्ज की है. गोवा में भी कांग्रेस को खास सफलता नहीं मिल पाई है, क्योंकि पार्टी को 11 सीटों पर संतोष करना पड़ा है. आम आदमी पार्टी को इस बार गोवा चुनाव में दो सीटें मिली हैं. हालांकि, कांग्रेस के लिए ये चुनाव काफी निराशाजनक रहे, क्योंकि पार्टी ने पांच राज्यों में बुरा प्रदर्शन किया और एक भी जगह सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो सकी.
कांग्रेस के अस्तित्व पर मंडराया खतरा
वहीं, पराजय और अंदरूनी कलह से पहले ही कमजोर हो चुकी कांग्रेस के लिए अब उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों से चुनौतियां बढ़ गई हैं. अब वह एक ऐसे मोड़ की तरफ बढ़ती नजर आ रही है जहां उसके सामने राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प होने की प्रासंगिकता गंवाने का खतरा पैदा हो गया है. यही नहीं, इन चुनाव परिणामों से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के खाते में चुनावी नाकामी का एक और अध्याय जुड़ गया तो पहली बार सक्रिय नेता के तौर पर जनता के बीच पहुंची प्रियंका गांधी वाद्रा का जादू भी बेअसर रहा. कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती राष्ट्रीय स्तर अपनी प्रासंगिकता खोने की है.