यूएपीए (UAPA) के तहत पीएफआई पर प्रतिबंध (PFI Ban) के बाद केंद्र सरकार (Central government) ने सभी राज्यों से इन संगठनों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई (quick auction) करने को कहा है। अब एजेंसियों के सामने देश भर में फैले कैडर के खिलाफ कार्रवाई करने की चुनौती होगी। संगठन के सदस्य नाम बदलकर किसी अन्य संगठन के माध्यम से अपनी गतिविधियां न चला सकें, इसके लिए व्यक्तियों को भी यूएपीए के तहत नामित किया जा सकता है। जानकारों के मुताबिक, जांच एजेंसियां इन संगठनों की संपत्तियां जब्त (Organizations confiscated assets) कर सकती है और बैंक खातों पर भी रोक (Bank accounts also blocked) लगा सकती है। संगठन से जुड़े सदस्यों की धरपकड़ तेज की जाएगी।
सुरक्षा मामलों के जानकार पीके मिश्रा ने कहा, प्रतिबंधित गैर कानूनी संघ घोषित होने के बाद केंद्रीय एजेंसियों और राज्यों की पुलिस को संबंधित संगठन के सदस्यों की गिरफ्तारी, खातों को फ्रीज करने और यहां तक कि संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार होता है। यानी एजेंसियां अब पीएफआई और उसके नेताओं की संपत्तियों को जब्त भी कर सकती हैं। वर्ष 2016 में जब केंद्र सरकार ने जाकिर नाइक के संगठन इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन को प्रतिबंधित किया था तब नाइक के बैंक अकाउंट और अचल संपत्तियों को भी जब्त कर लिया था। फिलहाल एजेंसियों को लंबे समय तक कार्रवाई का सिलसिला जारी रखना होगा। ट्रिब्यूनल में यह मामला जाएगा, वहां भी एजेंसियों को पुख्ता तथ्य रखने होंगे।
उम्रकैद, कुछ परिस्थितियों में मौत तक की सजा
यूएपीए की धारा 10 के मुताबिक, किसी भी प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होना अपराध है। अगर कोई शख्स किसी प्रतिबंधित संगठन से जुड़ा हुआ पाया जाता है तो उसे दो साल की कैद की सजा हो सकती है। मामला गंभीर हो तो दोषी को आजीवन कारावास और यहां तक कि कुछ परिस्थितियों में मौत की सजा भी हो सकती है। हालांकि, प्रतिबंधित संगठन घोषित होने से पहले जो उसके सदस्य बने थे, उन पर कार्रवाई नहीं होगी, बशर्ते कि वे बैन के बाद उस संगठन से दूरी बना लें।
अपनी गतिविधियां नहीं चला पाएगी पीएफआई
यूएपीए की धारा-10 यह भी कहती है कि अगर कोई व्यक्ति किसी प्रतिबंधित संगठन का सदस्य बना रहता है, उसकी बैठकों में हिस्सा लेता है या उसके लिए काम करता है या उसकी किसी भी तरह से मदद करता पाया जाता है तो उसे दो साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है। जाहिर है कि अब पीएफआई और उससे जुड़े प्रतिबंधित संगठन अब अपनी गतिविधियां नहीं चला पाएंगे। अगर वे ऐसा करते हैं तो वह गैरकानूनी होगा और उसमें शामिल सदस्यों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी। अगर प्रतिबंधित संगठन के किसी सदस्य के पास से हथियार या विस्फोटक मिलते हैं या वह हिंसक गतिविधियों में शामिल पाया जाता है तो उसे आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। गंभीर मामलों में मौत की सजा भी मुमकिन है।
पीएफआई के खातों में जमा रकम फ्रीज हो सकती है
यूएपीए के सेक्शन-7 के मुताबिक, गैरकानूनी गतिविधियों से जुटाई गई रकम का इस्तेमाल नहीं हो सकता। यानी प्रतिबंध लगने के बाद अब पीएफआई के खातों में जमा रकम को सरकार फ्रीज कर सकती है। अब उसके लिए फंडिंग अपराध की श्रेणी में आएगा।
दफ्तरों को किया जा सकता है जब्त
यूएपीए की धारा-8 केंद्र सरकार को यह अधिकार देती है कि वह किसी जगह को गैरकानूनी गतिविधियों से जुड़ा हुआ घोषित कर सकती है। यहां यह जगह कोई इमारत हो सकती है, उसका कोई हिस्सा हो सकता है, कोई घर हो सकता है और यहां तक कि कोई टेंट भी हो सकता है। स्थानीय डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को केंद्र की तरफ से घोषित गैरकानूनी गतिविधियों वाली जगहों पर मौजूद हर तरह के सामान की सूची बनानी होती है। कोई व्यक्ति उन सामानों का इस्तेमाल नहीं कर सकता।
आगे क्या: न्यायाधिकरण में जाएगा मामला
1. अधिकारियों ने बताया कि गृह मंत्रालय जब प्रतिबंध का नोटिफिकेशन जारी कर देता है, तो उसे प्रतिबंध की पुष्टि के लिए यूएपीए न्यायाधिकरण से संपर्क करना पड़ता है। संगठन को गैरकानूनी घोषित करने के लिए पर्याप्त कारण हैं या नहीं, यहां इस बात पर निर्णय लिया जाता है।
2. गृह मंत्रालय दिल्ली हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को न्यायाधिकरण के जज की नियुक्ति करने के लिए चिट्ठी लिखेगा। इसके बाद अधिसूचना जारी होने के 30 दिनों के भीतर मंत्रालय यह मामला न्यायाधिकरण भेज देगा। न्यायाधिकरण मामले पर जल्द से जल्द और किसी भी मामले में अधिसूचना जारी होने की तारीख से छह महीने के भीतर फैसला करेगा।
3. न्यायाधिकरण पीएफआई और उससे जुड़े संगठनों के गिरफ्तार सदस्यों को बुलाकर पूछेगा कि उनके संगठन को गैरकानूनी घोषित क्यों न किया जाए। अगर पीएफआई इसका विरोध करता है तो जज मामले की जांच करेंगे। वो लोगों की राय भी ले सकते हैं। जज को पर्याप्त सबूत मिले तो पांच साल का प्रतिबंध लागू कर दिया जाता है।
4. अब पीएफआई और उससे जुड़े संगठनों या उसके सदस्यों के पास कोई धनराशि होगी, जिनका देशविरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल होने की आशंका है तो केंद्र उसे जब्त कर सकता है। या उस पैसे का भुगतान करने से रोक सकता है।
5. प्रतिबंध आदेशों से असंतुष्ट कोई भी व्यक्ति इस तरह के आदेश की तामील की तारीख से 14 दिनों के भीतर जिला न्यायाधीश की अदालत में आवेदन कर सकता है और यह साबित कर सकता है कि संपत्तियों का उपयोग किसी गैरकानूनी गतिविधि के लिए करने की कोई मंशा नहीं है। जिला न्यायाधीश की अदालत मामले पर फैसला करेगी।
इस तरह जुड़े हैं पीएफआई और सिमी के तार
पीएफआई को स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का नया रूप कहा जाता है, इसके पीछे कई ठोस वजह हैं। सिमी को 2001 में प्रतिबंधित कर दिया गया था। जानकारी के मुताबिक, इस संगठन के बहुत से लोग धीरे-धीरे पीएफआई में शामिल होते चले गए। सिमी के संचालन में अहम भूमिका निभाने वाले कम से कम तीन बड़े नाम पीएफआई से स्पष्ट तौर पर जुड़े हैं जैसे।
प्रोफेसर पी कोया: पीएफआई का राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य था। यह सिमी का संस्थापक सदस्य था। इसने 1982 में सिमी से इस्तीफा दे दिया था। कोया ने 1993 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ) की स्थापना की। यही एनडीएफ आगे चलकर पीएफआई बना।
ई अब्दुल रहीमन: 1982 से 1993 के बीच सिमी का महासचिव था। इसके बाद पीएफआई के वाइस चेयरमैन बना।
ई अबुबाकर: पीएफआई के राजनीतिक दल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) का अध्यक्ष था। 1982 से 1984 के बीच सिमी की केरल यूनिट का प्रमुख था।
एनआईए के पास पीएफआई से जुड़े 19 केस
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के अनुसार उसके पास पीएफआई से जुड़े 19 केस हैं। पीएफआई से जुड़े कई मामलों में अबतक 46 आरोपी दोषी करार दिए जा चुके हैं। वहीं पीएफआई से जुड़े 355 सदस्यों के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है।
देश के खिलाफ पाकिस्तान से मिलाया हाथ
जांच एजेंसियों की मानें तो पीएफआई सदस्य मोहम्मद साकिब हवाला के जरिए पाकिस्तान से पैसे भेजता था। यही नहीं पीएफआई के सदस्यों का संबंध पाकिस्तानी हैंडलरों से भी था जो पीएफआई के साथ मिलकर देश में आंतक फैलाने की साजिश रचते थे।