अग्निपथ योजना (Agneepath Scheme) के जरिए सेना में नेपाली गोरखों (Nepali Gorkhas) की भर्ती को लेकर संशय बरकरार है। हालांकि, भारत (India) की तरफ से नेपाल (Nepal) को बताया जा चुका है कि नई योजना में पहले की ही तरह गोरखों की भर्ती जारी रहेगी। लेकिन नेपाल ने इसे 1947 में हुए त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन (breach of tripartite agreement) बताया है। इसके चलते नेपाल गोरखों की भर्ती की इजाजत नहीं दे रहा है।
आजादी के वक्त भारत-नेपाल और ब्रिटेन के बीच हुए समझौते के तहत दोनों देशों की सेनाओं में गोरखा नौजवानों की भर्ती पर सहमति जताई गई थी। तब से सात गोरखा रेजिमेंट में लगातार नेपाली गोरखा भर्ती होते रहे हैं। लेकिन अग्निपथ योजना में हुए बदलावों को लेकर नेपाल खुश नहीं है। उसने इसमें पेंशन और सेवाकाल से जुड़े मुद्दे उठाए हैं।
1947 में हुए समझौते का उल्लंघन बता रहा नेपाल
नेपाल में इसे 1947 में हुए समझौते का उल्लंघन बताया जा रहा है। खबर है कि सरकार को समर्थन दे रही कम्युनिस्ट पार्टिंयां सरकार पर समझौते से बाहर निकलने के लिए दबाव डाल रही हैं। इस बीच, सेना प्रमुख मनोज पांडे ने भी नेपाल का दौरा किया है। हालांकि, उनका दौरा नेपाल सेना के निमंत्रण पर था, लेकिन समझा जाता है कि इस मुद्दे पर भी चर्चा हुई होगी। हालांकि, आधिकारिक तौर पर इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।
भर्ती की दो तारीखें हो चुकी हैं रद्द
इस बारे में पूछने पर सेना की तरफ से कहा गया है कि अभी नेपाल में गोरखों की भर्ती को लेकर कोई नई तारीख तय नहीं की गई है। पहले दो तिथियां तय हुई थीं, लेकिन नेपाल से अनुमति न मिलने के कारण वह रद्द कर दी गई थीं। अग्निपथ योजना में जहां सिर्फ चार साल के लिए अग्निवीरों की भर्ती का प्रावधान है, वहीं इसमें रेजिमेंट के अनुसार भर्ती प्रक्रिया भी नहीं होगी।
सेना में 30 हजार नेपाली गोरखा जवान कार्यरत
भारतीय सेना में इस समय करीब 30 हजार नेपाली गोरखा जवान कार्यरत हैं। नेपाल में 1.25 लाख पूर्व सैनिक हैं, जिन्हें रक्षा मंत्रालय से नियमित रूप से पेंशन मिलती है। भारत में ही नहीं ब्रिटेन सेना में भी आज गोरखा जवानों को बेहतरीन सिपाही माना जाता है।