करीब एक दशक के सबसे गहरे बिजली संकट (power crisis) से निपटने के लिए केंद्र सरकार (central government) ने आपातकालीन प्रावधान (emergency provision) लागू किए हैं। इसके तहत कोयला आयात से लेकर घरेलू कोयला उत्पादन (coal production) बढ़ाने और कोयले को संयंत्रों तक समय पर पहुंचाने के लिए हर मोर्चे पर युद्धस्तर पर जुटी है। विद्युत मंत्रालय ने बताया कि सरकार आयातित कोयले से बिजली बनाने वाली बंद पड़ी विद्युत उत्पादन इकाइयों को फिर शुरू करने जा रही है, साथ ही बंद खदानों से कोयला भी निकाला जाएगा।
बिजली की मांग चार दशक के उच्चतम स्तर पर है। वहीं आयातित कोयले पर आधारित 43 फीसदी से ज्यादा विद्युत उत्पादन इकाइयां बंद पड़ी हैं, जिनसे करीब 17.6 गीगावाट बिजली पैदा हो सकती है। देश में कोयला आधारित कुल विद्युत उत्पादन में ये इकाइयां 8.6 फीसदी का योगदान करती हैं। इसी वजह से सरकार ने इन्हें शुरू करने की तैयारी की है। इसके अलावा विद्युत उत्पादन की लागत ग्राहकों से वसूलने के लिए समिति का गठन किया है।
विद्युत उत्पादक इकाइयों के पास कोयले का भंडार 9 वर्ष के न्यूनतम स्तर पर आ गए हैं। इस संकट के पीछे कई कारण हैं, जिनमें विद्युत वितरण कंपनियों की ग्राहकों से बिजली उपभोग की समय पर कीमत वसूलने में नाकामी से कोयला खदानों से कोयला उत्पादन में 33 फीसदी तक कमी करना शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले वर्ष मार्च-अप्रैल की तुलना में नॉन कोकिंग कोल की कीमत 50 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 288 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई थी। रूस से कोयला आयात बंद करने के बाद अब कीमत करीब 140 डॉलर प्रति टन है।
आयात पर तुरंत कदम उठाएं राज्य
केंद्रीय विद्युत मंत्री आरके सिंह ने शुक्रवार को फिर से राज्यों से कहा कि वे बिजली उत्पादन के लिए कोयला आयात पर तुरंत कदम उठाएं। बिजली बनाने वाली इकाइयों के कोयला आयात की समीक्षा बैठक के दौरान सिंह ने कहा कि जो जितना ज्यादा कोयला आयात करेगा, उसे मिश्रण के लिए उसी अनुपात में घरेलू कोयला उपलब्ध कराया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने राज्यों व बिजली बनाने वाली इकाइयों को उन्हें आवंटित खदानों से भी खनन बढ़ाने को कहा।
आयातित कोयले से पूरी क्षमता से बिजली उत्पादन का आदेश
बिजली की मांग में 20 फीसदी से ज्यादा वृद्धि को देखते हुए कोयला केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने आयातित कोयले से बिजली बनाने वाले सभी संयंत्रों को पूरी क्षमता से संचालित करने का आदेश दिया है। इससे पहले मंत्रालय ने सभी निजी व सार्वजनिक विद्युत उत्पादकों को निर्देश दिया था कि वे जरूरत का कम से कम 10 फीसदी कोयला आयात करें।
मंत्रालय ने बताया कोयले की अंतरराष्ट्रीय कीमत बढ़ने की वजह से कोयला आयात काफी कम हो गया है, जिससे घरेलू कोयले पर अधिक दबाव पड़ रहा है। 2015-16 में 370 लाख टन कोयला आयात किया जा रहा था, जो 2021-22 में घटकर 240 लाख टन रह गया, जबकि बिजली की मांग बढ़ने से कोयले की मांग बढ़ती जा रही है।
विद्युत, कोयला व रेल मंत्रालय में तालमेल की कमी से हुई दिक्कत : एआईपीईएफ
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने मौजूदा बिजली संकट को विद्युत, कोयला व रेल मंत्रालय में तालमेल के अभाव का नतीजा बताया है। एआईपीईएफ ने केंद्र सरकार से कोयले के आयात पर राज्यों को मुआवजा देने का अनुरोध करते हुए कहा, केंद्र सरकार को राज्यों को कोयला आयात पर मुआवजा देना चाहिए, क्योंकि घरेलू उत्पादन में कमी से उन्हें कोयला आयात करना पड़ रहा है।
बंद खदानों से बढ़ेगा उत्पादन
कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने ट्वीट कर बताया कि 20 बंद पड़ी कोयला खदानों से फिर से उत्पादन शुरू करने का फैसला किया गया है। इन खदानों में अब भी करीब 3800 लाख टन कोयला मौजूद है। वहीं, मंत्रालय के सचिव एके जैन ने बताया आगामी दो-तीन वर्ष में कोयला उत्पादन 750-1,000 लाख टन तक बढ़ाने की कोशिश की जाएगी। इसके लिए 100 से ज्यादा बंद पड़ी कोयला खदानों में फिर से खनन शुरू किया जाएगा।
उत्पादन से ज्यादा खपत
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक, आयातक और उपभोक्ता है। देश में 2021-22 के दौरान करीब 7,772 लाख टन कोयला उत्पादन किया गया, जबकि 10,000 लाख टन कोयला इस्तेमाल किया गया। कोल इंडिया जो कि दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है, भारत का 80 फीसदी कोयला उत्पादन करती है।