रूस (Russia) की शक्तिशाली सेनाओं से 83 दिनों तक टक्कर लेने के बाद आखिरकार मारियुपोल (Mariupol) शहर यूक्रेन (Ukraine) के हाथ से निकल गया. इस शहर के स्टील प्लांट की सुरंगों में रहकर हमले कर रहे यूक्रेनी सैनिकों ने रूसी फौज के सामने सरेंडर कर दिया, जिसके बाद उन्हें हिरासत में लेकर रूसी सेना ने अपने ठिकाने पर भेज दिया है. मारियुपोल की जीत के साथ ही रूस को अपने कब्जे वाले इलाके क्रीमिया को जमीनी मार्ग से जोड़ने का सुरक्षित ठिकाना भी मिल गया है.
क्रीमिया के लिए खासा अहम था मारियुपोल
‘न्यूयार्क टाइम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक मारियुपोल शहर रूस (Russia) के लिए कई मायनों में खासा अहम था. दरअसल क्रीमिया में पीने के साफ पानी की कमी है. उसे यह पानी मारियुपोल (Mariupol) से गुजरने वाली नदी से मिलता था. लेकिन वर्ष 2014 में क्रीमिया पर रूसी कब्जे के बाद यूक्रेन ने इस नदी के पानी की नहर के रास्ते क्रीमिया जाने से रोक दिया था. जिसके बाद से वहां पर लगातार जलसंकट बना हुआ था. अब मारियुपोल पर कब्जे के साथ ही क्रीमिया में मीठे पानी की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी.
दूसरी वजह ये थी कि रूस यूक्रेन के पूर्वी इलाके, जिसे डोनबास कहा जाता है. उसे यूक्रेन से कर देना चाहता है. इन दोनों इलाकों तक अपनी समुद्र के रास्ते फौज भेजने के लिए बंदरगाह शहर मारियुपोल अहम गेटवे था. इसलिए इस पर पूरी तरह कब्जा किए रूसी सेना सुगमता से आगे नहीं बढ़ सकती थी.
यूक्रेनी नेवी का रास्ता हुआ बंद
तीसरी वजह ये थे कि मारियुपोल के जरिए ही यूक्रेन (Ukraine) समुद्री व्यापार करता था और यहीं से उसकी नेवी ऑपरेट करती थी. इस शहर पर संपूर्ण कब्जे से यूक्रेन के हाथों से समुद्री व्यापार और नेवी के संचालन का रास्ता लगभग बंद हो गया है.
इन तीनों कारणों की वजह से रूसी (Russia) सेना पिछले 3 महीने से मारियुपोल (Mariupol) पर ताबड़तोड़ हमला बोल रही थी. भारी भरकम हथियारों और सैनिकों की अधिक तादाद के चलते रूसी फौजों ने शहर के बड़े हिस्से को जीत लिया था. लेकिन शहर के बाहर करीब 11 किलोमीटर इलाके में फैला स्टील प्लांट उसके लिए मुसीबत बना हुआ था. इस इलाके में सोवियत काल की दर्जनों सुरंगे बनी हुई हैं. जिनमें छिपकर यूक्रेनी सैनिक अपना बचाव और रूसी फौजों पर हमला कर रहे थे.
रूस के सामने सैनिकों ने कर दिया सरेंडर
आखिरकार हथियार, दवा और राशन के खत्म होने के बाद उनके सामने सरेंडर के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा था. यूक्रेनी (Ukraine) सरकार ने भी बीच का कोई रास्ता न देखकर उन्हें हथियार डालने की इजाजत दे दी. राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने उनके सरेंडर को साहस की प्रतिमूर्ति बताया. उन्होंने मारियुपोल (Mariupol) की रक्षा में जुटे रहे अजोव बटालियन (Azov Battalion) की तुलना उन स्पार्टन सैनिकों से की, जो कई सौ साल पहले पर्शियन सेना से लड़े थे.
क्या होगा अजोव बटालियन का भविष्य
मारियुपोल में यूक्रेन की अजोव बटालियन (Azov Battalion) के सरेंडर के बाद रूसी सैनिक उन्हें बसों में बिठाकर अपने कब्जे वाले इलाके में ले गए. अब उनका भविष्य क्या होगा, इस पर अभी कुछ भी क्लियर नहीं है. दरअसल दोनों देशों में बातचीत लगभग बंद है. हालांकि यूक्रेन के नेताओं को उम्मीद है कि तुर्की की मध्यस्थता से वे रूस को पकड़े गए सैनिकों की अदला-बदली के लिए मना लेंगे.