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2 दिसंबर को है मासिक शिवरात्रि, जानें- भगवान शिव की पूजा की तिथि और शुभ मुहूर्त

2 दिसंबर को मासिक शिवरात्रि है। यह हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। वहीं, माघ महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। शिवरात्रि के दिन साधक भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-आराधना कर व्रत उपवास रखते हैं। धार्मिक मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि करने से साधक को मनोवांछित फल की की प्राप्ति होती है। ज्योतिषों की मानें तो अविवाहित लड़कियों और लड़कों को मासिक शिवरात्रि का व्रत जरूर करना चाहिए। इस व्रत के पुण्य प्रताप से व्रती की शीघ्र शादी हो जाती है। साथ ही विवाहित महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आइए, व्रत के बारे में विस्तार से जानते हैं-

मासिक शिवरात्रि पूजा की तिथि

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की तिथि 2 दिसंबर को रात में 8 बजकर 26 मिनट पर शुरू होकर 3 दिसंबर को शाम में 4 बजकर 55 पर समाप्त होगी। धार्मिक ग्रंथों में शिवरात्रि के दिन निशाकाल में पूजा करने का विशेष महत्व है। इसके लिए साधक 2 दिसंबर की रात्रि में शिवजी की पूजा उपासना कर सकते हैं।

मासिक शिवरात्रि महत्व

देवों के देव महादेव के सुमरन मात्र से सभी संकट दूर हो जाते हैं। शंकराचार्य ने महामृत्युंजय मंत्र जाप कर मृत्यु को जीत लिया था। अत: आधुनिक समय में महामृत्युंजय मंत्र का विशेष महत्व है। मासिक शिवरात्रि के दिन भक्तिभाव से शिवजी की पूजा-अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पू्र्ण होती हैं। साथ ही विवाहित महिलाओं के सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस दिन मंदिरों एवं मठों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया जाता है, जबकि, धार्मिक स्थलों पर शिव चर्चा की जाती है।

मासिक शिवरात्रि पूजा विधि

इस दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सर्वप्रथम भगवान शिव एवं माता पार्वती को स्मरण करें। अब घर की साफ़-सफाई करें और गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। तत्पश्चात, भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा दूध, दही, पंचामृत, फल, फूल, धूप, दीप, भांग, धतूरा और बिल्व पत्र से करें। इसके बाद आरती-अर्चना कर अपनी मनोकामना भगवान शिव से जरूर कहें। अपना क्षमता अनुसार, दिनभर उपवास रखें। व्रती चाहे तो दिन में एक फल और एक बार पानी पी सकते हैं। शाम में आरती-अर्चना कर फलाहार करें। अगले दिन पूजा-पाठ संपन्न कर व्रत खोलें। इसके बाद जरूरतमंदों और ब्राह्मणों दान दें। इसके बाद ही भोजन ग्रहण करें।