शिक्षा की कोई उम्र नहीं होती, इसे साबित कर दिखाया फतेहाबाद जिले के गांव अहलीसदर के 101 साल के चंबाराम ने। रविवार को शिक्षा विभाग के उल्लास कार्यक्रम के तहत आयोजित परीक्षा में चंबाराम रोल मॉडल बने। उम्र के इस पड़ाव पर भी चंबाराम का जोश और शिक्षा के प्रति लगाव देखने लायक था। वे खुद चलकर गांव के सरकारी स्कूल में बनाए गए परीक्षा केंद्र पहुंचे और परीक्षा दी।
जिला समन्वयक पवन सागर और शिक्षकों ने चंबाराम का माला पहनाकर स्वागत किया। पहली बार डेस्क पर बैठकर परीक्षा देने के बाद चंबाराम ने खुशी और जोश के साथ कहा, “सारे पढ़न, निके वडे सारे पढ़न।” चंबाराम के इस उत्साह ने पूरे गांव को प्रेरित किया है।
दादा को पढ़ने के लिए किया प्रेरित
चंबाराम के पोते हंसराज ने बताया कि सरकारी स्कूल के एक शिक्षक ने घर आकर उनके दादा को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद, चंबाराम ने पढ़ाई करने का फैसला किया। पड़ोस की निजी स्कूल की शिक्षिका संदीप कौर ने स्वयंसेवी शिक्षिका के रूप में चंबाराम को पढ़ाया, जिससे वे परीक्षा देने के लिए तैयार हो गए।
बेटा चलाता है निजी स्कूल, पोता कनाडा में
चंबाराम के परिवार में शिक्षा का महत्व पहले से ही है। उनके बड़े बेटे भजनलाल टोहाना में एक निजी स्कूल चलाते हैं, जबकि पोता हंसराज कनाडा में रहता है। चंबाराम के चार पोते, दो दोहते और दो दोहती हैं, और सभी पढ़े-लिखे हैं। हालांकि चंबाराम खुद खेत की जिम्मेदारी के कारण पढ़ाई नहीं कर पाए, लेकिन अब उन्होंने अपने जीवन के इस अधूरे सपने को पूरा करने का निर्णय लिया है।
उल्लास कार्यक्रम के तहत परीक्षा
शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित उल्लास कार्यक्रम के अंतर्गत निरक्षरों को शिक्षा दी गई और उसके बाद जिले में 256 केंद्रों पर परीक्षा आयोजित की गई। चंबाराम जैसे लोग इस कार्यक्रम के प्रेरणास्त्रोत बने हैं, जो यह संदेश दे रहे हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती।