भारत में भीषण गर्मी हर साल रिकॉर्ड तोड़ रही है. लेकिन गर्मी का ये भीषण तांडव आने वालों वर्षों में किस तरह का संकट लेकर आ रहा है इसका अंदाजा अभी शायद किसी को नहीं है. सच्चाई ये है कि जब हालात बेकाबू होंगे तो इसका नतीजा होगा करोड़ों नौकरियों का खत्म हो जाना, अनाज का संकट और सबसे बड़ी बात धरती के इस हिस्से में रहना नामुमकिन सा हो जाएगा.
भारत के लिए ये परिस्थितियां किसी आपदा से कम नहीं होंगी. इस संकट को गहराई से समझने के लिए हाल के वर्षों में बढ़ी गर्मी के आंकड़ों को भी जानना जरूरी है. राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश…यहां के कम से कम 37 शहर और इलाके ऐसे हैं जहां तापमान बुधवार को 44 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो गया. राजधानी दिल्ली में भी तापमान 44 से 46 डिग्री सेल्सियस के बीच बना हुआ है. उत्तराखंड के हरिद्वार में गर्मी ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है. यहां तापमान 42.5 डिग्री सेल्सियस है.
जब तापमान मैदानी इलाकों में 40 डिग्री, तटीय इलाकों में 37 डिग्री और पहाड़ी इलाकों में 30 डिग्री को पार कर जाता है, तो मौसम विभाग हीट वेव की घोषणा कर देता है. इसी तरह अलग-अलग जगहों पर एक सामान्य तापमान होता है. जब किसी जगह पर सामान्य से 4.5 से लेकर 6.4 डिग्री ज्यादा रहता है तो भी हीट वेव की घोषणा कर दी जाती है. अब गर्मी इतनी बढ़ रही है कि हीटवेव के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. सेंटर फॉर साइंस एड एनवायरमेंट (CSE) की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल पिछले साल की तुलना में चार गुना ज्यादा हीट वेव चली है.
अब बढ़ती गर्मी ‘न्यू नॉर्मल’ होती जा रही है. जानकारों का कहना है कि 45 डिग्री तापमान में रहना धीरे-धीरे सामान्य होता जा रहा है. बढ़ती गर्मी और हीट वेव की वजह से हर साल कई मौतें होती हैं. 1975 से लेकर 2021 तक देश में साढ़े 15 हजार से ज्यादा मौतें सिर्फ हीट वेव की वजह से हो गईं. सबसे ज्यादा मौतें 2015 से 2019 के बीच (साढ़े तीन हजार से ज्यादा) हुईं. अकेले 2015 में ही 2,081 मौतें हुई थीं.
भारत का तापमान हर साल सामान्य से ज्यादा रह रहा है. पिछले साल ही भारत का औसत तापमान सामान्य से 0.44 डिग्री ज्यादा रहा था. 1901 के बाद 2021 पांचवां सबसे गर्म साल रहा था. सबसे ज्यादा तापमान 2016 में बढ़ा था. उस साल सामान्य से ये 0.71 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था. दो साल पहले मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेस की क्लाइमेट चेंज पर एक रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि 2100 तक भारत का तापमान 4.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा.
2015 में क्लाइमेट चेंज को लेकर पेरिस में एक समझौता हुआ था. इसमें 2100 तक धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के अंदर रोकने का टारगेट तय हुआ था. हालांकि, इस समय सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देश भयंकर गर्मी से जूझ रहे हैं, जिससे 2100 तक इस टारगेट को छू पाना मुश्किल है. 2015 में वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर सारे तरीके भी अपनाए गए तो भी 2050 तक हर साल भारत का औसत तापमान 1 से 2 डिग्री तक बढ़ने का अनुमान है. वहीं, अगर कोई तरीके नहीं अपनाए गए तो हर साल 1.5 से 3 डिग्री तक तापमान बढ़ जाएगा.
खाने का संकट खड़ा होगाः वर्ल्ड मीटियरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (WMO) की हाल ही में आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हीट वेव की वजह से इस साल भारत में गेहूं की फसल के उत्पादन में कम से कम 20 फीसदी की कमी आई है. पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों की 10 से 35 फीसदी तक गेहूं की फसल खराब हो गई, जिससे बाजार में गेहूं की कीमत 15% तक बढ़ गई. WMO का कहना है कि इन्हीं सबके चलते भारत ने गेहूं के एक्सपोर्ट पर भी बैन लगा दिया.
रहने की जगह भी नहीं होगीः जर्मनी की संस्था जर्मन वॉच की एक रिपोर्ट कहती है कि क्लाइमेट चेंज के मामले में भारत दुनिया का 14वां सबसे संवेदनशील देश है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, भारत के 60 करोड़ लोग यानी लगभग आधी आबादी ऐसी जगह रहती है, जहां 2050 तक जलवायु परिवर्तन के गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं. अमेरिका की मैसेच्युएट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी का अनुमान है कि सदी के आखिर तक धरती की सतह का तापमान 4.5 डिग्री तक बढ़ जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो दक्षिण एशिया के कई इलाकों पर इंसानों का रहना मुश्किल हो जाएगा.
नौकरियां भी खतरे में होंगीः बढ़ती गर्मी से नौकरियों पर भी खतरा पैदा होगा. भारत जैसे देश में जहां अभी 90 करोड़ से ज्यादा लोग नौकरी के योग्य हैं, वहां 2030 तक साढ़े तीन करोड़ नौकरियां सिर्फ गर्मी के कारण खत्म हो जाएंगे. 2019 में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि 2030 तक गर्मी के कारण दक्षिण एशिया में 4.3 करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी. सबसे ज्यादा असर भारत पर पड़ेगा और यहां 3.4 करोड़ नौकरियां चली जाएंगी.
लेकिन गर्मी बढ़ने की वजह क्या है?
भारत में बारिश लगातार कम होती जा रही है. मौसम विभाग के मुताबिक, 1961 से 2010 तक भारत में हर साल औसतन 1176.9 मिमी बारिश होती थी, जबकि 1971 से 2020 के बीच हर साल औसतन 1160.1 मिमी बारिश ही हुई. यही वजह है कि इस साल से जून से सितंबर के बीच 868.6 मिमी बारिश को सामान्य माना जाएगा, जबकि पहले 880.6 मिमी बारिश को सामान्य माना जाता था.
इसके अलावा बड़े शहरों में धड़ल्ले से पेड़ काटे जा रहे हैं. फरवरी 2020 में लोकसभा में सरकार ने बताया था कि 2016-17 से 2018-19 के बीच तीन सालों में देश में 76 लाख से ज्यादा पेड़ काटे गए थे. हालांकि, इन पेड़ों की जगह दूसरी जगह पेड़-पौधे लगाए भी जाते हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर पेड़-पौधे शहर से बाहर लगाए जाते हैं. यही कारण है कि अब शहरों को ‘अर्बन हीट आईलैंड’ कहा जाने लगा है.