भारतीय रेलवे को अपनी लेटलतीफी के लिए अब यात्री को 30 हजार रुपये का भुगतान करना पड़ेगा। आज से सुप्रीम कोर्ट ने पांच साल पहले 2016 के एक मामले में ये फैसला सुनाया है, जो रेलवे के लिए एक बहुत बड़ा सबक है।
ये है पूरा मामला
यह मामला संजय शुक्ला नामक के एक व्यक्ति से जुड़ा हुआ है। जो अपनी फैमिली के साथ 11 जून 2016 को अजमेर-जम्मू एक्सप्रेस से यात्रा कर रहे थे। सुबह 8 बजकर 10 मिनट पर ट्रेन को जम्मू पहुंचना था मगर यह 12 बजे पहुंची। इसका मतलब ट्रेन पूरे चार घंटे लेट थी। जिसकी वजह से संजय शुक्ला के परिवार की फ्लाइट मिस हो गई। उन्हें दोपहर 12 बजे की फ्लाइट से जम्मू से श्रीनगर जाना था। जिसके बाद उन्होंने अपने पूरे परिवार के साथ एक टैक्सी किराए पर ली और जम्मू से श्रीनगर पहुंचे। उन्हें इसके लिए 15,000 रुपये देने पड़े। उन्हें रहने की व्यवस्था के लिए भी 10,000 रुपये खर्च करने पड़ गए। ये पूरा मामला लेकर संजय शुक्ल अलवर जिले के कंज्यूमर फोरम पहुंचे। फोरम ने उत्तर पश्चिम रेलवे को शुक्ला को 30 हजार रुपये का मुआवजा देने का फैसला सुना दिया।
SC ने फैसले को सही ठहराया
रेलवे इसे नेशनल फोरम में भी लेकर गया, मगर रेलवे को वहां भी राहत नहीं मिली। जिसके बाद रेलवे इसे सुप्रीम कोर्ट लेकर पहुंचा। SC ने भी डिस्ट्रिक्ट, स्टेट और नेशनल फोरम्स के निर्णय को सही मानते हुए रेलवे को आदेश दिया कि वो यात्री को जुर्माने का भुगतान करे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में पीठ के सामने ASG ऐश्वर्या भाटी ने रेलवे रूल्स के बारे में बताते हुए दलील दी कि ये तो रूल है कि देरी की जिम्मेदारी रेलवे की नहीं है, मगर पीठ ने उनकी दलील को सही नहीं ठहराया और रेलवे को जुर्माना भरने का आदेश दे दिया।
SC की तल्ख टिप्पणी
SC ने कहा कि रेलवे ट्रेनों के देर होने की जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। यदि ट्रेनो के देर होने से किसी यात्री को नुकसान होता है तो रेलवे को मुआवजे का पेमेंट करने के लिए तैयार रहना चाहिए। पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन को प्राइवेट सेक्टर के साथ कंपीट करना है तो उसे अपने सिस्टम और कार्यशैली में सुधार लाना ही होगा।