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यूपी विधान परिषद में जीरो पर पहुंचेगी कांग्रेस, 113 साल में बाद पहली बार इतने बुरे हालत

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संसदीय इतिहास में 6 जुलाई को कांग्रेस (Congress) अपने सबसे खराब दौर में प्रवेश करेगी। 113 साल में पहली बार ऐसा होगा जब विधान परिषद (Legislative Assembly) में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व ही नहीं होगा। उसके एकमात्र सदस्य दीपक सिंह का उस दिन कार्यकाल समाप्त होगा। इस तरह से कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru) से प्रारंभ हुआ यह सिलसिला उनकी पांचवीं पीढ़ी के समय में खत्म हो रहा है।

उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की स्थापना 5 जनवरी 1887 को हुई थी। तब इसके 9 सदस्य हुआ करते थे। 1909 में बनाए गए प्रावधानों के तहत सदस्य संख्या बढ़ाकर 46 कर दी गई, जिनमें गैर सरकारी सदस्यों की संख्या 26 रखी गई। इन सदस्यों में से 20 निर्वाचित और 6 मनोनीत होते थे। मोती लाल नेहरू ने 7 फरवरी 1909 को विधान परिषद की सदस्यता ली। उन्हें विधान परिषद में कांग्रेस का पहला सदस्य माना जाता है। हालांकि, 1920 में कांग्रेस की सरकार के साथ असहयोग की नीति के तहत उन्होंने सदस्यता त्याग दी थी। तब यूपी को संयुक्त प्रांत के नाम से जाना जाता था।

आजादी के बाद 1989 तक विधान परिषद में नेता सदन कांग्रेस का ही रहा। इस अवधि में सिर्फ 1977 और 1979 ही अपवाद रहा, क्योंकि तब यह पद जनता पार्टी के पास था। विगत 33 वर्षों में कांग्रेस विधानसभा में सिकुड़ती गई। इस बार हुए विधानसभा चुनाव में तो सदस्य संख्या के लिहाज से अपने सबसे निम्नतम स्थिति में पहुंच गई। उसके मात्र दो विधायक जीते और 2.5 फीसदी से भी कम मत मिले। इसका असर विधान परिषद में उसकी सदस्य संख्या पर पड़ना लाजिमी था।

वर्तमान में विधान परिषद में कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह बचे हैं और उनका कार्यकाल 6 जुलाई 2022 को समाप्त हो रहा है। मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए निकट भविष्य में कांग्रेस के उच्च सदन में प्रतिनिधित्व की उम्मीद भी किसी को दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है।