देश की राजधानी दिल्ली (Delhi) में दिल्ली विधानसभा (Delhi Assembly) के स्पीकर राम निवास गोयल (Ram Niwas Goyal) ने दावा किया है कि विधानसभा कैंपस में एक फांसी घर मिला है. उन्होंने बताया कि लंबे समय से बंद विधानसभा के एक हिस्से में दीवार तोड़ने पर ऐसी जगह सामने आई है. वह इमारत दो मंजिला है और जिस दीवार को तोड़कर फांसी घर नज़र आया है, वहां पहुंचने के लिए काफी पुरानी लकड़ी की सीढ़ियों का इस्तेमाल करना होता है. हालांकि इससे पहले विधानसभा हॉल में एक सुरंग भी मिल चुकी है, जिसे लेकर स्पीकर ने दावा किया था कि इसके जरिए क्रांतिकारियों को यहां लाकर फांसी दी जाती थी. फ़िलहाल जांच के लिए भारतीय पुरातत्व विभाग को पत्र भी लिखा गया है.
दरअसल, दिल्ली विधानसभा के स्पीकर राम निवास गोयल ने कहा कि 1912 में कोलकाता से राजधानी हटाकर, दिल्ली लाई गई थी. यह विधानसभा उस समय सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली के नाम से जानी जाती थी. वहीं, साल 1926 तक यहीं पर असेंबली रही, सभी तत्कालीन नेता मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय यहां बैठते थे. महात्मा गांधी भी यहां 2 बार आ चुके हैं. 1926 में लोकसभा यहां से चली गई और उसके बाद इस जगह को कोर्ट में बदल दिया गया. तब लाल किले से क्रांतिकारियों को सुरंग के जरिए यहां लाया जाता था.
काफी लंबे समय से बंद पड़ा था दरवाजा
बता दें कि विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल के मुताबिक, विधानसभा कैंपस में एक दरवाजा लंबे समय से बंद था. बीते 3 साल पहले इसे खुलवाया गया था, जहां फांसी घर मिला है, उसके नीचे जमीन पर बाथरूम बना हुआ है जिसे अब बंद कर दिया जाएगा. फ़िलहाल दिल्ली विधानसभा के फांसी घर को पर्यटकों के लिए शुरू करने पर विचार चल रहा है. विधानसभा स्पीकर ने बताया कि आर-पार दिखने वाली कांच की एक लिफ्ट लगाई जाएगी, जिससे आम जनता फांसी घर देख सकें. स्पीकर ने बताया कि फांसी घर को ढूंढने के लिए पिछले कई महीनों से कोशिश चल रही थी. हालांकि, कोरोना की वजह से देरी भी हुई.
किसी मंदिर से कम नहीं है फांसी घर- स्पीकर
गौरतलब है कि विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि फांसीघर उनके लिए मंदिर से कम नहीं है. यहां उन स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है, जिससे देश आजाद हो सका. उन्होंने कहा कि इस कमरे को स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक श्रद्धांजलि के रूप में तीर्थस्थल में बदला जाएगा. ऐसे में अगले साल तक पर्यटक भी इसे देखने आ सकेंगे. इसके इतिहास की खोज करने की कोशिश की गई है, लेकिन न ही सुरंग और न ही फांसीघर का कोई इतिहास मिला है. फिलहाल विधानसभा इमारत के उपयोग से संबंधित कागजात गायब हैं. इसके लिए केंद्र सरकार और लोकसभा अध्यक्ष से मदद मांगी गई है, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है.