श्री राम जन्मभूमि अयोध्या में रामलला रामनवमी के दिन इस बार पीले रंग का वस्त्र धारण करेंगे. इस बार रामलला का अस्थाई मंदिर में अंतिम जन्मोत्सव है. इसके बाद साल 2024 का जन्मोत्सव भव्य मंदिर में मनाया जाएगा. इसके अलावा भव्य मंदिर में रामलला का दिव्य स्वरूप भी सामने आएगा. इसके लिए देश भर के चुनिंदा मूर्तिकार अपने-अपने मॉडल श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंप रहे हैं.
दरअसल, श्री राम जन्मभूमि परिसर में विराजमान रामलला के वस्त्र का रंग दिन के अनुसार बदलता रहता है. रामलला रविवार को गुलाबी, सोमवार को सफेद, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरा, गुरुवार को पीला, शुक्रवार को क्रीम और शनिवार को नीला वस्त्र धारण करते हैं. इस बार की रामनवमी 30 मार्च को है. इस दिन गुरुवार है. इस दिन रामलला को पीले वस्त्र पहनाए जाएंगे.
साल 1984 से सिला जा रहा है रामलला का वस्त्र
हालांकि, दिन कोई भी हो, रामनवमी के दिन रामलला को पीले वस्त्र ही पहनाए जाते हैं. माना जाता है कि पीला रंग शुभ होता है. लिहाजा, इस खास दिन के लिए रामलला की खास पोशाक बनकर तैयार हो गई है. पुश्तों से रामलला की पोशाक सिल रहे भगवत प्रसाद ने ही पीले रंग की खास गोटे लगी पोशाक तैयार की है. वहीं, रामलला के दर्जी भगवत प्रसाद का कहना है कि रामलला के वस्त्र साल 1984 से सिले जा रहे हैं.
पहले रामलला गुंबद में थे. तब हम और हमारे पिताजी वहीं मशीन लेजाकर रामलला के लिए वस्त्र सिला करते थे. इस बार रामलला रामनवमी पर पीले रंग का वस्त्र पहनेंगे और भव्य मंदिर में विराजमान होने से पहले यह उनकी अस्थाई मंदिर में आखिरी रामनवमी है. हम लोग इस समय बहुत तकलीफ में है क्योंकि हमारी तीन दुकानें सड़क चौड़ीकरण में टूट गई हैं.
5 से 6 साल के बालक जैसी होगी रामलला की मूर्ति- चंपत राय
मामले में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि विद्वानों का सुझाव है कि रामलला की मूर्ति को 5 से 6 साल के बालक जैसी होनी चाहिए. विचार है कि खड़ी हुई मूर्ति ही बननी चाहिए. ज्यादातर मूर्तिकारों का सुझाव है कि खड़ी मूर्ति ही होना चाहिए. फिलहाल अभी छोटी-छोटी प्रतिमाएं बनकर आएंगी, उसके बाद उसको देखकर ही विचार किया जाएगा.
चंपत राय ने आगे बताया कि रामलला की आंख, नाक, कान, चेहरा, पैरों की उंगलियां, धनुष और तीर कितना बड़ा हो, इन बारीकियों को भी देखा जा रहा है. बारीकियों पर चित्रकारों ने कहा है कि पहले वह चित्र बनाकर देंगे. फिर चित्र के आधार पर कई लोग मूर्तियां बनाएंगे. उनमें से फिर निर्णय लिया जाएगा कि कौन सी मूर्ति ज्यादा हृदय को स्पर्श करती है. फिर प्राण प्रतिष्ठा की जाने वाली मूर्ति बनेगी.