अफगानिस्तान संकट पर कम्युनिस्ट देशों चीन और रूस की साठगांठ अब साफ नजर आने लगी है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अफगानिस्तान में पैर जमाने के संबंध में बुधवार को गहन चर्चा की है। लेकिन इन लोगों की बातचीत में कहीं भी जी-7 देशों की उस मांग का पुट नहीं था जिसमें एक दिन पहले ही कहा गया था कि तालिबान को 31 अगस्त के बाद भी लोगों को अफगानिस्तान से निकालने की छूट देनी चाहिए।
हालांकि, इन दोनों नेताओं की फोन पर हुई बातचीत में चीन ने स्पष्ट किया कि वह अफगानिस्तान की आजादी और संप्रभुता की इज्जत करता है। वह उसके आंतरिक मामले में दखल नहीं देने की रणनीति अपनाएगा। वहीं, काबुल में चीनी राजनयिक ने पहली बार तालिबानी नेताओं से मुलाकात की है। चीनी अखबार पीपुल्स डेली की रिपोर्ट के मुताबिक रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग को फोन पर बताया कि वह अफगानिस्तान में चीन की स्थिति और हितों को समझते हैं और वह अफगानिस्तान को उन विदेशी सेनाओं से बचाना चाहते हैं जो उसमें दखलंदाजी कर उसे नष्ट कर रहे हैं। शी ने अफगानिस्तान में सभी पक्षों से खुला और समग्र राजनीतिक ढांचा तैयार करने की अपील की है, ताकि सभी आतंकी संगठनों से संबंध तोड़कर मध्यम स्तर की स्थिर नीतियां अपनाई जा सकें।उल्लेखनीय है कि चीन और रूस जी-7 देशों में शामिल नहीं हैं। इस समूह में अमेरिका और ब्रिटेन जैसे समृद्ध और लोकतांत्रिक देशों का वर्चस्व है।
इधर, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने बताया कि काबुल में बुधवार को तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के उप प्रमुख अब्दुल सलाम हनाफी और चीनीराजदूत वांग यू ने मुलाकात की है। वांग ने बातचीत का ब्योरा दिए बगैर कहा कि काबुल स्वाभाविक रूप से अहम मंच है। यह अहम मुद्दों पर चर्चा का जरिया है। चीन अफगान लोगों के स्वतंत्र निर्णय,उनके भविष्य व नियति का सम्मान करता है। इससे पहले, तालिबानी सरगना चीन में जाकर वहां सरकारी अमले से बातचीत करके आए थे। इसके अलावा, चीन के साथ ही पाकिस्तान और रूस ने अपने-अपने दूतावास काबुल में खुले रखे हैं और उन्हें बंद नहीं करने का एलान किया है।