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श्रीराम के वानर सेना में कौन किया था पांडव पुत्र को परास्त, जानें महाभारत की कहानी

प्रभु श्री राम जब सीता माता की खोज करते हुए कर्नाटक के हम्पी जिला बेल्लारी स्थित ऋष्यमूक पर्वत पर्वत पहुंचे तो वहां उनकी भेंट हनुमानजी और सुग्रीवजी से हुई। उस काल में इस क्षेत्र को किष्‍किंधा कहा जाता था। यहीं पर हनुमानजी के गुरु मतंग ऋषि का आश्रम था। श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले अपनी सेना का गठन किया था जिसमें एक वानर सेना भी थी। वानर सेना का कामकाज सुग्रीव के जिम्मे था। आओ जानते हैं कि वानर सेना में कौन कौन था और कौन थे वानर सेना के दो खास भाई।

वानर सेना : वानर सेना में सुग्रीव, अंगद, हनुमानजी, दधिमुख (सुग्रीव का मामा), नल, नील, क्राथ, केसरी (हनुमानजी के पिता) आदि कई महान योद्धा थे जिसमें से मैन्द- द्विविद नामक दो भाई भी यूथ पति थे। हर झूंड का एक सेनापति होता था जिसे यूथपति कहा जाता था।

मैन्द- द्विविद : द्विविद सुग्रीव के मन्त्री और मैन्द के भाई थे। ये बहुत ही बलवान और शक्तिशाली थे, इनमें दस हजार हाथियों का बल था। महाभारत सभा पर्व के अनुसार किष्किन्धा को पर्वत-गुहा कहा गया है और वहां वानरराज मैन्द और द्विविद का निवास स्थान बताया गया है। द्विविद को भौमासुर का मित्र भी कहा गया है। ये दोनों भाई दीर्घजीवी थे। रामायण के बाद भी ये जिंदा रहे और महाभारत काल में भी इनकी उपस्थिति मानी गई थी।

यह भी कहा जाता है कि एक बार महाभारत के सहदेव किष्किन्धा नामक गुफा में जा पहुंचे। वहां वानरराज मैन्द और द्विविद के साथ उन्होंने सात दिनों तक युद्ध किया था। परंतु वे उन दोनों महान योद्धाओं का कुछ बिगाड़ नहीं सके। तब दोनों वानर भाई प्रसन्न होकर सहदेव से बोले- ‘पाण्डवप्रवर! तुम सब प्रकार के रत्नों की भेंट लेकर जाओ। परम बुद्धिमान धर्मराज के कार्य में कोई विघ्न नही पड़ना चाहिये।’