यूरोपीय देश लिथुआनिया और चीन का मुद्दा (Lithuania China Issue) इस समय सुर्खियों में बना हुआ है. लिथुआनिया ने बीते हफ्ते चीन की अगुवाई वाले सीईईसी (चीन और मध्य-पूर्वी यूरोपीय देशों के बीच सहयोग) फोरम से अलग होने का फैसला लिया था. जिसपर अब चीन का जवाब आ गया है. साल 2012 में चीन द्वारा बनाए गए इस सहयोग फोरम को 17+1 के नाम से भी जाना जाता है. 28 लाख से भी कम आबादी वाले इस देश ने फोरम को ‘विभाजनकारी’ बताते हुए यूरोप के बाकी सदस्यों से भी कहा कि वह इससे अलग हो जाएं.
लिथुआनिया के विदेश मंत्री गैब्रिलियस लैंड्सबर्गीज ने एक बयान जारी कर कहा, ‘लिथुआनिया अब 17+1 फोरम का सदस्य नहीं है और इस पहल में वह हिस्सा नहीं लेगा.’ हाल के महीनों में लिथुआनिया ने ऐसे कई कदम उठाएं हैं, जिनपर चीन ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी. जिसमें चीनी निवेश को ब्लॉक करना, शिंजियांग का मुद्दा उठाना और ताईवान के साथ संबंध बढ़ाने जैसे फैसले शामिल हैं (Lithuania China Taiwan). इस पूरे मामले पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा है कि यह सहयोग फोरम छिटपुट घटनाओं से प्रभावित नहीं होगा.
चीन ने क्या कहा?
झाओ ने कहा, ‘चीन-सीईईसी चीन और मध्यपूर्वी यूरोपीय देशों के लिए फायदेमंद है. इसके गठन के बाद से ही बीते 9 साल में अच्छी खासी उपलब्धियां हासिल की गई हैं और यह छिटपुट घटनाओं से प्रभावित होने वाला नहीं है.’ लिथुआनिया के हटने के बाद अब इस फोरम में बुल्गारिया, चेक गणराज्य, अल्बानिया, बोस्निया एवं हर्जेगोविना, क्रोएशिया, ग्रीस, एस्टोनिया, हंगरी, लातविया, पोलैंड, रोमानिया, स्लोवेनिया, स्लोवाकिया, नॉर्थ मेसिडोनिया, मॉन्टेनिग्रो, सर्बिया शामिल हैं.
क्या है सीईईसी फोरम?
चीन ने साल 2012 में मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों के साथ अपने संबंध बेहतर करने के लिए इस फोरम की शुरुआत की थी. 2012 के बाद से ही इसका हर साल शिखर सम्मेलन भी होता है. लेकिन 2020 में कोरोना के कारण सम्मेलन नहीं हो सका था (What is CEEC). फोरम के तहत कई देशों में परियोजनाओं पर काम चल रहा है. चीन ने इन सदस्य देशों में भारी निवेश भी किया है. लिजियान ने लिथुआनिया का नाम लेकर सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहा लेकिन चीन के सरकारी अखबार में कहा गया है कि लिथुआनिया ने ये अमेरिका के प्रभाव में आकर किया है.