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याद आए भयानक मंजर के रूप: कोयले की खदान में विस्फोट, जमीन के 600 मीटर नीचे फंसी थी जिंदगी, 299 लोगों ने गंवाई जान

दुनिया में खदान सेक्टर (Mining Sector) में काम करने को सबसे ज्यादा खतरनाक और असुरक्षित माना जाता है. इस कारण यहां काम करने वाले खनिकों, मजदूरों और अन्य अधिकारियों की जान पर खतरा हमेशा ही बना रहता है. हर साल हजारों खनिकों की खदान (Mine) में फंसने या खदान के भीतर किसी अन्य दुर्घटना के चलते मौत हो जाती है. ऐसी ही एक दुर्घटना आज ही के दिन जर्मनी (Germany) में हुई जब 299 खनिकों को जहरीली मीथेन गैस (Methane Gas) और खदान में फंसने की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ी. ये मजदूर खदान (Mine) में 600 मीटर नीचे फंस गए. इस भयानक मंजर के बारे में सोच कर रूह कांप जाती है.


आज से 59 साल पहले 7 फरवरी, 1962 को जर्मनी (Germany) में रोज की तरह एक आम दिन था, लेकिन किसी को इस बात का अंदेशा नहीं था कि आज जो होने वाला है, वो खनन इतिहास का सबसे भयंकर वाक्या बनने जा रहा है. जर्मनी के आलस्बेक (Alsbachschacht) क्षेत्र में मीथेन गैस (Methane Gas) से भरी गुफा (Cave) खोलने के दौरान इसमें विस्फोट हो गया. इस कारण कोयले की धूल (Coal Dust) से भरा एक विस्फोट भी हो गया. दरअसल, लुसेंथल (Luisenthal) में स्थित चार कोयला खदानों में से एक के पास ये विस्फोट हुआ था. विस्फोट के बाद भूमिगत शाफ्ट का ढक्कन ऊंचा उड़ा और खदान के दरवाजे पर जाकर अटक गया. इस कारण इसमें कोयला मजदूर फंस गए.
धमाके के बाद दिखे काले बादल, खनिकों को बचाने पहुंचा बचाव दल

धमाके के बाद आस-पास के इलाके में काले बादल (Black Cloud) देखे जा सकते थे. चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो गया. लोग घबराकर इधर उधर भागने लगे. वहीं, खदान के भीतर फंसे मजदूर ये सोच रहे थे कि कहीं वे इसी में ना फंस जाए. घटना के तुरंत बाद राहत एवं बचाव दल (Rescue Team) को सूचना दी गई. जो अपने लाव-लश्कर को लेर घटनास्थल पर पहुंचा. एंबुलेंस, हेलिकॉप्टर और पुलिस की गाड़ियों के सायरन की आवाज चारों ओर गूंज रही थी. धुएं और शोर के बीच में खदान के बाहर खड़े लोगों के चेहरे पर तनाव और चिंता की झलक देखी जा सकती थी. लुसेंथल (Luisenthal) और आस-पास के इलाके को छावनी में तब्दील कर दिया गया और खदान में फंसे मजदूरों को बचाने का काम शुरू हुआ.

जमीन के 600 मीटर नीचे फंसे 287 खनिक

लुसेंथल (Luisenthal) में स्थित इस कोयला खदान (Coal Mine) में काम करने वाले मजदूरों की संख्या 998 थी, जिसमें से बड़ी संख्या में मजदूर खदान के बाहर खड़े थे. इन मजदूरों के चेहरे पर अपने साथियों की जिंदगी को लेकर दर्द दिख रहा था. इन मजदूरों ने अपनी मेहनत के बूते इस खदान में से कोयला निकालकर जर्मनी (Germany) की पुनर्स्थापना में मदद की थी. खदान में से 73 मजदूरों को बचाव दल ने सुरक्षित बाहर निकाला, लेकिन इन्हें गंभीर चोट लगी हुई थी. वहीं, 61 मजदूर ऐसे थे, जिन्हें बिना किसी चोट के खदान से बाहर निकाला गया था. इन सभी लोगों को आगे के इलाज के लिए फौरन अस्पताल रवाना किया गया. इनमें से एक खनिक ने बताया कि अब खदान में कोई भी जिंदा नहीं बचा है, लेकिन उसकी बात पर किसी को यकीन नहीं हुआ. बाद में जाकर पता चला कि कुल 287 खनिक जमीन के 600 मीटर नीचे फंसे हुए हैं.

कुल 299 लोगों की हुई मौत, 73 बुरी तरह घायल

धमाके के 24 घंटे बाद बचाव दल को एक लिस्ट सौंपी गई, जिसमें सभी मजदूरों के नाम शामिल थे. दो सप्ताह तक बचाव अभियान चलता रहा, किसी तरह टीम इन फंसे हुए लोगों तक पहुंची, लेकिन तब तक इनकी हालात बहुत खराब हो चुकी थी. ऊपर से जहरीली मीथेन गैस ने और आफत मचाई हुई थी. इन सभी को बाहर निकाला गया, लेकिन राहत बचाव के इस पूरे काम को खत्म होने में दो सप्ताह से अधिक समय लग गया. बाद में इलाज के दौरान सैकड़ों मरीजों की मौत हुई. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, खदान के अंदर मारे गए मजदूरों की 299 थी, इस पूरी घटना में 73 लोग बुरी तरह जख्मी भी हुए.