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मोदी सरकार का फैसला: बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त करने की कॉलेजियम की सिफारिश को मिली मंजूरी

केंद्र सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपांकर दत्त को तरक्की देकर सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त करने की कॉलेजियम की सिफारिश को आखिरकार हरी झंडी दे ही दी. जस्टिस दीपांकर दत्त के नाम की सिफारिश चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित की अगुआई वाले कॉलेजियम ने 26 सितंबर को हुई बैठक में की गई थी. अब लगभग ढाई महीने बाद सरकार ने इस पर अपनी सहमति की मुहर लगाकर राष्ट्रपति के पास निर्णायक मंजूरी के लिए भेज दिया है. उम्मीद है कि एक-दो दिनों में नियुक्ति का वारंट जारी हो जाएगा और सोमवार तक वे सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में शपथ भी ले लेंगे. सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल 34 जजों की कुल तय संख्या के मुकाबले 27 जज ही अभी सेवारत हैं. अगले आठ महीनों में छह जज रिटायर होने वाले हैं.

जस्टिस दीपांकर दत्त का परिवार भी न्यायिक हस्तियों वाला है. उनके पिता भी कलकत्ता हाई कोर्ट में जज रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अमिताभ रॉय भी उनके निकट संबंधी हैं. कानून मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक पिछले महीने सरकार ने हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति से संबंधित 20 फाइलें वापस लौटा दी थीं. सरकार ने इन पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है. इनमें 11 फाइलें पिछले कुछ महीनों में भेजे गए नए नामों की हैं. 9 ऐसे नाम हैं, जिन्हें पहले वापस भेज दिया गया था और फिर से दोहराया गया है. सरकार ने अलग-अलग हाई कोर्ट में नियुक्तियों से संबंधित वो सभी नाम वापस कर दिए हैं, जिन पर हाई कोर्ट कॉलेजियम के साथ उसके ‘मतभेद’ हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम की बैठकों का एजेंडा और कार्यवाही सार्वजनिक किए जाने की मांग वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. हालांकि इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम सबसे पारदर्शी है. सिस्टम अपना काम कर रहा है, उसे डीरेल करने की कोशिश ना करें. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई करते हुए ये बातें कहीं. सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी अहम मानी जा रही है, क्योंकि ज्यूडिशरी के भीतर विभाजन और कॉलेजियम सिस्टम को लेकर सरकार के साथ बढ़ते विवाद के बीच आई है.

दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट ने सूचना के अधिकार अधिनियम (RTI) के तहत 2018 की एक कॉलेजियम बैठक की सूचना देने से इनकार कर दिया था. इस फैसले के खिलाफ एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.