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मैरिटल रेप का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाईकोर्ट के जज के फैसले को दी गई चुनौती

मैरिटल रेप के मामले मे दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. मैरिटल रेप यानी पत्नी से जबरन शारीरिक संबंध बनाना अपराध है या नहीं, इस पर दिल्ली हाई कोर्ट की 2 जजों की बेंच ने कुछ दिनों पहले बंटा हुआ फैसला दिया था. अब खुशबू सैफी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मैरिटल रेप के मामले में दिल्ली हाई कोई के जस्टिस राजीव शकधर के फैसले का समर्थन किया है, वहीं जस्टिस सी. हरिशंकर की राय को चुनौती दी है.

इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी. हरिशंकर की राय एक मत नहीं दिखी. दोनों जजों ने मैरिटल रेप के अपराधीकरण को लेकर खंडित फैसला सुनाया था. जस्टिस राजीव शकधर ने अपने फैसले में मैरिटल रेप को जहां अपराध माना, वहीं जस्टिस सी. हरिशंकर ने इसे अपराध नहीं माना.

जस्टिस राजीव शकधर ने क्या कहा?
वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को समाप्त करने का समर्थन करते हुए जस्टिस राजीव शकधर ने अपने फैसले में कहा था, ‘भारतीय दंड संहिता लागू होने के 162 साल बाद भी एक विवाहित महिला की न्याय की मांग नहीं सुनी जाती है तो दुखद है. जहां तक मेरी बात है, तो विवादित प्रावधान (धारा 375 का अपवाद दो) संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 15 (धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध), 19 (1) (ए) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन हैं और इसलिए इन्हें समाप्त किया जाता है.’

जस्टिस सी. हरिशंकर ने क्या कहा?
इस निष्कर्ष से असहमति जताते हुए जस्टिस सी. हरिशंकर ने कहा, ‘धारा 375 का अपवाद-2 अनुच्छेद 14, 19 या 21 का उल्लंघन नहीं करता है। इसमें साफतौर पर अंतर है. उन्होंने कहा, ‘यह अपवाद असंवैधानिक नहीं है और संबंधित अंतर सरलता से समझ में आने वाला है. मैं अपने विद्वान भाई से सहमत नहीं हो पा रहा हूं. ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 21 का उल्लंघन नहीं करते.’ खुशबू सैफी नाम की याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में मैरिटल रेप पर जस्टिस सी. हरिशंकर की इस राय को चुनौती दी है.

मैरिटल रेप के मामले पर क्या है केंद्र सरकार का रुख?
केंद्र सरकार ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने हलफनामे में कहा था कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि यह एक ऐसी घटना बन सकती है जो विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने का आसान साधन बन सकती है. हालांकि, इस साल जनवरी में केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा था कि वह वैवाहिक बलात्कार से संबंधित याचिकाओं के मामले में अपने पहले के रुख पर फिर से विचार कर रहा है.