प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज नई संसद जाने से पहले पुरानी संसद के सेंट्रल हॉल में अपना आखिरी भाषण दिया. अपने संबोधन में पीएम मोदी ने पुरानी संसद का नाम बदलने का सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि मेरी प्रार्थना है और मेरा सुझाव है कि अब हम जब नए सदन में जा रहे हैं तो पुरानी संसद की गरिमा कभी भी कम नहीं होनी चाहिए. इसे सिर्फ पुरानी संसद कहें, ऐसा नहीं करना चाहिए. इसलिए मेरी प्रार्थना है कि भविष्य में अगर आप सहमति दे दें तो इसको ‘संविधान सदन’ के रूप में जाना जाए, ताकि ये हमेशा-हमेशा के लिए हमारी जीवंत प्रेरणा बनी रहे.
पीएम मोदी ने अपने भाषण की शुरूआत में कहा कि नए संसद भवन में हम सब मिल कर के नए भविष्य का श्रीगणेश करने जा रहे हैं. आज हम यहां विकसित भारत का संकल्प दोहराना, फिर एक बार संकल्पबद्ध होना और उसको परिपूर्ण करने के लिए जी जान से जुटने के इरादे से नए भवन की ओर प्रस्थान कर रहे हैं.
पीएम मोदी ने कहा कि इसी संसद में मुस्लिम बहन-बेटियों को न्याय की जो प्रतिक्षा थी, शाहबानो केस के कारण गाड़ी कुछ उल्टी पड़ गई थी,इसी सदन ने हमारी उन गलतियों को ठीक किया और तीन तलाक विरूद्ध कानून हम सबने मिलकर पारित किया. संसद ने बीते सालों में ट्रांस्जेंडर को न्याय देने वाले कानूनों का भी निर्माण किया, इसके माध्यम से हम ट्रांस्जेंडर के प्रति सद्भाव और सम्मान के भाव के साथ उनको नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य और बाकी जो सुविधाएं हैं,एक गरिमा के साथ प्राप्त कर सकें. इसकी दिशा में हम आगे बढ़ें हैं.
पीएम मोदी ने यह भी कहा कि सामाजिक न्याय हमारी पहली शर्त है. बिना सामाजिक न्याय और बिना संतुलन, बिना समभाव के हम इच्छित परिणाम प्राप्त नहीं कर सकते, लेकिन सामाजिक न्याय की चर्चा बहुत सीमित बनकर रह गई है. हमें उसे एक व्यापक रूप में देखना होगा.
पीएम मोदी ने आगे कहा कि शायद ही कोई दशक ऐसा रहा होगा जब संसद में चर्चा न हुई हो, चिंता न हुई हो और मांग न हुई हो. आक्रोश भी व्यक्त हुआ, सभाग्रह में भी हुआ, सभाग्रह के बाहर भी हुआ. लेकिन हम सबका सौभाग्य है कि हमें सदन में आर्टिकल 370 से मुक्ति पाने का, अलगाववाद, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने का मौका मिला. इन सभी महत्वपूर्ण कामों में भी माननीय सांसदों की और संसद की बड़ी भूमिका रही.