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दुनिया पर मंडराया युद्ध का खतरा, ऑस्‍ट्रेलिया ने तेज की जंग की तैयारी, सेना चीन के साथ जंग की रणनीति बना रही

ऑस्‍ट्रेलिया की सेना ने अगले 5 साल में चीन के ताइवान पर हमला करने के खतरे को देखते हुए ड्रैगन के साथ जंग की तैयारी तेज कर दी है। सूत्रों के मुताबिक ऑस्‍ट्रेलिया की सेना चीन के साथ जंग के लिए रणनीति बना रही है। सेना के अधिकारी उस स्थिति के लिए खुद को तैयार कर रहे है जिसके तहत युद्ध होने की स्थिति में कोलिन्‍स श्रेणी के सबमरीन और सुपर हार्नेट फाइटर जेट को अमेरिकी सेना और अन्‍य साथी देशों की मदद के लिए ताइवान स्‍ट्रेट में भेजा जा सके।


डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक लगातार बढ़ते तनाव के बीच ऑस्‍ट्रेलिया और अन्‍य क्‍वॉड देशों-जापान, भारत और अमेरिका के ऊपर दबाव बढ़ रहा है कि वे चीनी ड्रैगन की सेना पर लगाम कसें। हाल के दिनों में चीनी सेना पूरे इलाके में बहुत आक्रामक हो गई है। उसने हॉन्‍ग कॉन्‍ग में लोकतंत्र समर्थकों और उइगरों को कुचल दिया है। अब यह डर सता रहा है कि चीन ताइवान पर अपनी सैन्‍य ताकत का प्रयोग कर सकता है ताकि राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग के शासन काल में ताइवान का चीन के साथ एकीकरण किया जा सके।

चीन के विमान ताइवानी वायुसीमा में घुसपैठ का प्रयास कर रहे

चीन ने इस सप्‍ताह ही अपने 25 फाइटर विमानों के बेड़े को ताइवान के इलाके में भेजा था। ऑस्‍ट्रेलिया के कूटनीतिक सूत्रों ने कहा, ‘कई घटनाक्रम हो रहे हैं और स्थितियों के लिए योजना बन रही है।’ उन्‍होंने इसका उद्देश्‍य यह दिखाना है कि हम प्रतिबद्धता में कोई कमी नहीं है। ताइवान और अमेरिका के बीच गहराते रक्षा संबंधों से चिढ़े चीन ने साउथ चाइना सी में अपने सैन्य अभियानों की तादाद को बढ़ा दिया है। लगभग हर दिन चीन के लड़ाकू विमान जानबूझकर ताइवानी वायुसीमा में घुसपैठ करने का प्रयास कर रहे हैं।

ग्लोबल टाइम्स के एडिटर ने बताया कारण

ऐसा पहली बार हुआ है जब ड्रैगन का मुखपत्र कहे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने बताया है कि आखिर चीनी लड़ाकू विमान ताइवानी एयरस्पेस में बार-बार घुसपैठ क्यों करते हैं। ग्लोबल टाइम्स के चीफ एडिटर हू शीजिन ने बताया कि चीन का सैन्य अभियान दरअसल अमेरिकी विदेश विभाग और ताइवान के बीच संबंधों की गाइडलाइन का उल्लंघन के जवाब में किया जा रहा है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ताइवान और अमेरिका के बीच गहराते संबंधों को देखते हुए इलाके में सैन्य दबाव को और बढ़ाएगी। अगर ताइवान हमारे जहाजों पर फायरिंग करता है तो इसे पूर्ण युद्ध माना जाएगा और पूरा का पूरा ताइवाान स्ट्रेट हमारा होगा।

ताइवान से लेकर हिंदुस्तान तक चीन की चालबाजी, समुद्र ही नहीं जमीन पर भी कर रहा जबरदस्त किलेबंदी थुसीडाइड्स ट्रैप दरअसल एक ग्रीक दार्शनिक थुसीडाइड्स का विचार है। इसमें कहा गया है कि बढ़ती हुई शक्तियां हमेशा घटती हुई शक्तियों को हमेशा संघर्ष के साथ खत्म करती हैं। इसमें अमेरिका को घटती हुई ताकत और चीन को बढ़ती हुई शक्ति के रूप में दिखाया गया है। चीन ने इंडो पैसिफिक में अपनी बढ़ती महत्वकांक्षा के कारण भारत ही नहीं, बल्कि जापान, ताइवान, फिलीपींस, मलेशिया, वियतनाम और इंडोनेशिया के साथ सीमा विवाद को भड़काया है। यही कारण है कि साउथ चाइना सी से लेकर हिंद महासागर तक चीन अपनी ताकत को तेजी से बढ़ा रहा है। इसमें समुद्र में नए कृत्रिम द्वीप बनाकर उसे मिलिट्री बेस बनाना या गरीब देशों को कर्ज के जाल में फंसाकर उनके यहां सैन्य अड्डा स्थापित करना शामिल हैं। यही कारण है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपनी महत्वकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को काफी महत्व दे रहे हैं। चीन के चक्कर में एशिया में न केवल श्रीलंका बल्कि लाओस और मालदीव कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं।

श्रीलंका में तो चीन ने हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल की लीज पर ले लिया है। कंबोडिया में भी चीन ने मिलिट्री बेस बनाकर भारत को अंडमान सागर में घेरने की चाल चली है। चीन को सबसे अधिक खतरा साउथ चाइना सी में ताइवान अमेरिका और जापान की उपस्थिति से है। यही कारण है कि चीनी सेना इस इलाके में तेजी से अपनी सामरिक ताकत को बढ़ा रही है। चीनी सेना के जनरल जू किइलियांग ने संसद सत्र के दौरान कहा कि सेना को अपनी क्षमता बढ़ाने में तेजी लानी चाहिए। सेना को लड़ाकू तरीकों और क्षमता में सफलताओं को बढ़ाना चाहिए और सैन्य आधुनिकीकरण के लिए एक मजबूत नींव रखना चाहिए। यही कारण है कि हाल के दिनों में चीनी सेना ने अपनी आक्रामत तेवरों को तेजी से बढ़ाया है। ताइवान न्यूज ने गूगल अर्थ की हाल की तस्वीरों के आधार पर दावा किया है कि चीन ने ताइवान के नजदीक फुजियान प्रांत में चीनी एयरफोर्स के दो ठिकानों को तेजी से अपग्रेड किया है।

कई अलग-अलग ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) की तस्वीरों के अनुसार, चीन हिंद महासागर से लेकर प्रशांत महासागर तक तेजी से मिलिट्री बेस को अपग्रेड कर रहा है। भारत के खिलाफ चीन लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक मिलिट्री बेस और एयरबेस को तेजी से अपग्रेड कर रहा है। हाल के दिनों में कई ऐसी रिपोर्ट्स आई हैं जिनसे पता चला है कि चीन ने भारत की सीमा के नजदीक कई नए मिलिट्री ठिकानों को बनाया है, जो युद्ध के समय उसके काम आ सकती है। लद्दाख ही नहीं अरुणाचल प्रदेश को भी लेकर चीन के साथ भारत का विवाद है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, कंबोडिया ने अपने इस नेवल बेस को 99 साल की लीज पर चीन की कंपनी तियानजिन को दे दिया है। यह कंपनी इस पोर्ट को विकसित करने के लिए 3.8 अरब डॉलर का निवेश करेगी। इस समझौते के तहत चीन की नौसेना इस ठिकाने को अगले 40 सालों तक इस्तेमाल कर सकेगी। यह कंपनी पास के एक हवाई अड्डे को भी विकसित करने की योजना पर काम कर रही है। माना जा रहा है कि चीन यहां अपने एडवांस जे-20 लड़ाकू विमानों को तैनात कर सकता है।

कंबोडिया पर कब्जा करने की नीयत से चीन साल 2017 से भारी निवेश कर रहा है। वर्तमान समय में चीन ने कंबोडिया में लगभग 10 अरब डॉलर का निवेश किया है। इतनी बड़ी राशि को चुकाने में कंबोडिया जैसा गरीब देश नाकाम हो गया है। इसी के कारण उसने चीन की बात मानते हुए रीम नेवल बेस को गिरवी रख दिया है। वहीं, चीन पहले की ही तरह इस बात से इनकार कर रहा है कि उसने कर्ज के जाल में फंसाकर कंबोडिया से यह पोर्ट हासिल किया है। चीन को पोर्ट दिए जाने के बाद विरोध को देखते हुए कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन लगातार सफाई दे रहे हैं। उन्होंने कहा है कि चीन केवल इस नेवल बेस पर आधारभूत ढांचे का निर्माण करने जा रहा है। हुन सेन ने राजधानी नोम पेन्ह के पास एक चीनी स्वामित्व वाले थीम पार्क के उद्घाटन समारोह में कहा कि अन्य देश भी इस पोर्ट पर अपने जहाजों को ठहराने, ईंधन भरने या फिर कंबोडिया के साथ संयुक्त अभ्यास करने की अनुमति मांग सकते हैं। दो दिन पहले ही अमेरिकी सेना के इंडो पैसिफिक कमान के चीफ ने अमेरिकी संसद को बताया था कि चीन अगले 6 साल में ताइवान पर कभी भी हमला कर सकता है।

इस बीच चीन ने ताइवान के ऊपर अपने लड़ाकू विमानों को भेजने की तादाद भी काफी बढ़ा दी है। चीनी बमवर्षक, लंबी दूरी के लड़ाकू और निगरानी विमान लगभग रोजाना ताइवान की सीमाओं में घुसपैठ करते हैं। इस बीच पीएलए लॉन्गटियन और हुआन एयरबेस को और आधुनिक बनाने की तैयारियों में जुटा है। यह एयरबेस ताइवान की राजधानी ताइपे से माज्ञ 200 किलोमीटर की दूरी पर है। जहां से उड़ान भरने के बाद केवल 7 मिनट में कोई भी चीनी बमवर्षक ताइपे पर बम गिरा सकता है। यही कारण है कि ताइवान ने अमेरिका से कई मिसाइल डिफेंस सिस्टम की खरीद की है। इसके अलावा ताइवानी एयरफोर्स के जहाज अब पहले से अधिक संख्या में हमेशा उड़ान भरने के लिए तैयार रहते हैं। ताइवान वायु सेना के रिटायर्ड कमांडर चांग येन-टिंग ने कहा कि चीन के एयरफोर्स बेस के अपग्रेड होने से हमारी चिंताएं वास्तव में काफी बढ़ गई हैं। हमने पहले जो सुरक्षा के लिए तैयारियां की हुई हैं, अब उन्हें नए सिरे से फिर से तैयार करना होगा। इन बेस से उड़ान भरने वाले चीनी विमानों की निगरानी के लिए हमें अब बड़ी संख्या में मिसाइलें और रडार की तैनाती करनी होगी।

लद्दाख में जारी तनाव के बीच चीन लगातार तिब्बत में अपनी सेना की उपस्थिति को मजबूत कर रहा है। चीनी सेना ने सिक्किम बॉर्डर से 200 किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित शिगाज एयरबेस (Xigaze Airport) को अपग्रेड कर यहां नया मिलिट्री लॉजिस्टिक हब को स्थापित किया है। इसके अलावा, ल्हासा गोन्गर एयरपोर्ट पर जहाज पार्क करने, सामान चढ़ाने-उतारने, रिफिल करने वाली जगह को अपग्रेड करने का काम किया जा रहा है। यह एयरबेस 2017 के डोकलाम विवाद वाली जगह से भी नजदीक है। कुछ दिन पहले ओपन सोर्स इंटेलिजेंस detresfa_ ने सैटेलाइट तस्वीरों के हवाले से बताया है कि तिब्बत की राजधानी ल्हासा में पीएलए के मिलिट्री बेस में बड़े पैमाने पर अपग्रेडेशन का काम किया जा रहा है। यह तिब्बत के क्षेत्र में स्थापित चीन की सबसे बड़ा मिलिट्री बेस है। इस बेस पर पहली बार निर्माण कार्य को अप्रैल 2020 में देखा गया था, जिसके बाद जनवरी 2021 में भी ली गईं सैटेलाइट तस्वीरों में खुलासा हो रहा है कि यहां निर्माण कार्य अब भी जारी है। चीनी सेना ने कुछ महीने पहले ही सिक्किम बॉर्डर से 200 किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित शिगाज एयरबेस (Xigaze Airport) को अपग्रेड कर यहां नया मिलिट्री लॉजिस्टिक हब को स्थापित किया था।

विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस एयरबेस की मदद से चीन भारत और भूटान दोनों पर नजर रख सकता है। यह एयरबेस 2017 के डोकलाम विवाद वाली जगह से भी नजदीक है। इन सबके अलावा चीन अरुणाचल प्रदेश बॉर्डर से 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चामडो बंगडा एयरबेस को भी चीन अपग्रेड कर रहा है। चीन तेजी से हिंद महासागर में अपनी नौसैनिक ताकत को बढ़ा रहा है। वह अफ्रीका के नजदीक समुद्री लुटेरों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कार्यबल का हिस्सा बनने के बहाने हिंद महासागर की रेकी करता रहता है। पिछले साल ही भारतीय नौसेना ने अंडमान सागर में घुसपैठ करने वाले चीन के एक रिसर्च शिप को खदेड़ा था। इसके अलावा चीन की परमाणु पनडुब्बियां पूर्वी एशिया से लेकर अफ्रीकी महाद्वीप तक गश्त कर रही हैं। पाकिस्तान के साथ मिलकर चीन इस इलाके में भारत के खिलाफ मोर्चेबंदी भी कर रहा है। दरअसल दुनिया के सबसे बड़े समुद्री व्यापारिक मार्ग में से एक अदन की खाड़ी के नजदीक जिबूती में चीन का मिलिट्री बेस है।

जहां से वह भारत के खिलाफ नई-नई साजिशें रच रहा है। पाकिस्तान और चीन की नौसेना एक साथ इस इलाके में गश्त भी कर रही हैं। हालांकि, भारतीय नौसेना भी आक्रामक तरीके से हिंद महासागर में चीन को चुनौती दे रही है। सूत्रों के अनुसार, लद्दाख को लेकर भारत और चीन के बीच डब्लूएमसीसी की हुई बैठक में चीन ने भारत के इस मुद्दे को लेकर नाराजगी भी जताई थी। चीन ने ताइवान को लेकर जो बाइडन को भी हदों के अंदर रहने की चेतावनी दी थी। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने रविवार को अमेरिका के बाइडन प्रशासन को चेतावनी दी कि वह पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ताइवान का समर्थन करने के खतरनाक चलन को वापस लें। उन्होंने कहा कि ताइवान पर चीन का दावा उल्लंघन न करने योग्य लाल लकीर है।

अमेरिका का वैसे तो ताइवान की लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार के साथ आधिकारिक संबंध नहीं है, लेकिन वह सैन्य और राजनीतिक मामलों में इस द्वीपीय देश का खुला समर्थन करता है। ट्रंप ने भी अपने कार्यकाल के दौरान ताइवान के साथ अरबों डॉलर की कई खतरनाक मिसाइलें और लड़ाकू विमानों की डील की थी। ट्रंप ने अपने कैबिनेट के कई वरिष्ठ नेताओं को ताइवान दौरे पर भेजा था, जिससे चिढ़ते हुए चीन ने लड़ाकू विमानों को ताइवान के ऊपर उड़ाया था। चीनी विदेश मंत्री वांग ने कहा कि ताईवान मुद्दे पर चीन सरकार के सामने समझौते या रियायत की कोई गुजाइंश नहीं है। हम नये अमेरिकी प्रशासन से ताइवान मुद्दे से जुड़ी गंभीर संवेदनशीलता को पूरी तरह समझने की अपील करते हैं। वैसे तो वांग ने इस संबंध में कोई संकेत नहीं दिया कि अमेरिका यदि अपना रूख नहीं बदलता है तो चीन क्या कर सकता है, लेकिन सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने चेतावनी दी है कि यदि ताइवान औपचारिक स्वतंत्रता की घोषणा करता है या मुख्य भूमि से जुड़ने की वार्ता में देरी करता है तो चीन उस पर आक्रमण कर सकता है।

ताइवान को अपना अभिन्न हिस्सा बताता है चीन

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी गृह युद्ध के खत्म होने के सात दशक बाद भी ताइवान को अपनी जमीन का हिस्सा बताता है। यह बात अलग है कि ताइवान पर आजतक चीन का प्रत्यक्ष रूप से कभी शासन नहीं रहा है। चीनी सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारी कई बार ताइवान के ऊपर हमला करने की धमकी दे चुके हैं। पिछले साल के अंत में चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने यहां तक कहा था कि ताइवान की स्वतंत्रता का अर्थ ही जंग का ऐलान होगा।