साल 1947 में जुलाई का महीना चल रहा था… भारत और पाकिस्तान (India and Pakistan) के बंटवारे की तैयारी जोरों पर थी. दोनों देशों की सीमाएं तय हो रही थीं. सिरिल रैडक्लिफ (Cyril Radcliffe) की अगुवाई वाली कमेटी मैप पर लकीरें खींचकर लाखों-करोड़ों लोगों की किस्मत का फैसला करने में जुटी थी. दुनिया के नक्शे पर दो देश बन रहे थे. दिल्ली से लंदन तक हलचल तेज थी. मैप बनाने वालों को इंसानों की फिक्र कम इलाकों की ज्यादा थी. जिले-तहसील और गांव-कस्बे मैप पर ताश के पत्तों की तरह इधर से उधर फेंटे जा रहे थे. मैप को लेकर सियासी नूराकुश्ती भी तेज थी.
लोगों में भी अफवाहें खूब चल रही थीं. खासकर बॉर्डर बन रहे इलाकों में, कि किसका इलाका कहां जाएगा. कभी पड़ोस का जिला उस देश में चला जाता तो कभी पास का जिला इस पार के मैप में शामिल बताया जाता. वैसे तो कश्मीर रियासत का इस बंटवारे से कोई लेना देना नहीं था.
562 अन्य रियासतों की तरह अंग्रजों ने इनके भविष्य का फैसला इन्हीं रियासतों पर और नए जन्म ले रहे भारत और पाकिस्तान नामक दो देशों पर छोड़ दिया था. लेकिन पड़ोसी इलाकों में खींची जा रही सीमा कश्मीर के भाग्य का फैसला तय कर रही थीं जो कि काफी रोचक था और बंटवारे से पहले ही भारत और पाकिस्तान के भावी नेताओं के बीच तनाव का कारण बनने लगी थीं.
इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं रोचक तथ्य
देश विभाजन के इस हालात का काफी रोचक विवरण इतिहासकार और डिप्लोमैट एलिएस्टर लैम्ब ने दिया है. लैम्ब ने भारत-पाकिस्तान मुद्दे, कश्मीर विवाद और भारत-चीन के मसलों पर कई किताबें लिखी हैं. अपनी किताब Kashmir A Disputed Legacy में एलिएस्टर लैम्ब लिखते हैं- ‘जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हो रहा था, रैडक्लिफ की अगुवाई वाली कमेटी में सीमाओं का निर्धारण हो रहा था तब कई जटिलताएं थीं. पंजाब के दो टुकड़े किए जा रहे थे.
जुलाई 1947 तक कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार पूरे गुरुदासपुर जिले को पाकिस्तान में रखने की तैयारी थी. लाहौर तक के गलियारे तक अंतरराष्ट्रीय सीमा बनाने की सोच सामने रखी गई. ताकि पूरा अमृतसर भारत के अंदर रह सके. लेकिन 8 अगस्त 1947 की रिपोर्ट में रावी नदी के पूर्वी हिस्से में स्थित गुरुदासपुर के पूर्वी इलाकों को भारत में रख दिया गया. इसके बदले में सतलज नदी के पूर्व में स्थित फिरोजपुर जिले के अधिकांश हिस्सों को पाकिस्तान में रख दिया गया. फिर लाहौर जिले के एक हिस्से को भारत में रख लिया गया और इस पूरे इलाके को अमृतसर तक विस्तार दे दिया गया.’
लैम्ब आगे लिखते हैं- ’12 अगस्त को रेडक्लिफ की फाइनल रिपोर्ट तैयार हुई और 16 अगस्त 1947 को जब पब्लिश की गई तो मैप और बदल चुका था. अब फिरोजपुर का पूरा इलाका भारत में शामिल कर दिया गया ताकि सतलज नदी के पूरब का कोई इलाका पाकिस्तान के पास न रहे और लाइन सीधी हो जाए. गुरुदासपुर जिले की तीन तहसीलें भारत में शामिल कर दी गईं. मुस्लिम लीग ने इसका विरोध किया. भारत का तर्क था इन तहसीलों के बिना कश्मीर से उसका कोई कनेक्शन हीं नहीं रह जाएगा. पाकिस्तान इसके खिलाफ था और लॉर्ड माउंटबेटन पर कांग्रेस के दबाव में आने का आरोप लगा रहा था.’
विलय के लिए तैयार नहीं थे हरि सिंह, लेकिन साजिशें…
562 में से अधिकांश रियासतें एक-एक कर भारत या पाकिस्तान में विलय के लिए तैयार होती गईं लेकिन कश्मीर के डोगरा राजा हरि सिंह ने दोनों देशों से खुद को दूर रखने की कोशिश की. लेकिन सब चीजें राजा के मनमुताबिक नहीं चलनी थीं, न चलीं. पाकिस्तान से सटे कश्मीर के इलाकों, गिलगिट-बालटिस्तान के इलाकों में बगावत की बिगुल बज चुकी थी.
पाकिस्तान के हुक्मरान कश्मीर को भारत से दूर ही रखना चाहते थे क्योंकि उन्हें भरोसा था कि देर-सबेर मुस्लिम बहुल कश्मीर को वह हिंदू डोगरा राजा के शासन से मुक्त करा ही लेंगे. इसकी साजिशें कश्मीर के पाकिस्तान से सटे इलाके और गिलगित-बालटिस्तान में तैयार भी हो रही थीं जो आजादी के बाद अक्टूबर आते ही कश्मीर पर हमले के रूप में सामने आ ही गई.
महाराज हरि सिंह के बेटे कर्ण सिंह अपनी आत्मकथा में उस समय के हालात का वर्णन करते हुए लिखते हैं- ‘अक्टूबर 1947 की शुरुआत से ही मीरपुर-पुंछ-सियालकोट के इलाकों से लड़ाकों के घुसने, गांवों पर हमले, लूटपाट, जनसंहार, रेप और अन्य अपराध की घटनाओं की खुफिया सूचनाएं आने लगी थीं. बड़ी साजिश की तैयारी दिख रही थी.
रियासत के प्रधानमंत्री ने बॉर्डर इलाकों का दौरा किया और हर जगह साजिश-मार काट की सूचनाएं मिल रही थीं. कठुआ से भिंबर तक करीब 200 किलोमीटर के इलाके में मुस्लिम लड़ाके घुसकर हमले कर रहे थे. जनसंहार को अंजाम दिया जा रहा था.’
लेखक-पत्रकार प्रेम शंकर झा अपनी किताब Kashmir 1947: Rival Versions of History में लिखते हैं- ‘1947 में जैसे ही अंग्रेज भारत से लौटे कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की बेचैनी दिखने लगी. ट्राइब्स लड़ाकों की शक्ल में सैनिकों को कश्मीर के मोर्चे पर भेजा जाने लगा. अक्टूबर में जहां 7 हजार लड़ाके कश्मीर में आकर लड़ रहे थे बाद में जाकर ये संख्या 70 हजार तक पहुंच गई.
भारत ने अगर विलय के बाद सैनिक हस्तक्षेप नहीं किया होता तो लड़ाके श्रीनगर से बस कुछ ही किलोमीटर दूर रह गए थे. ऐसे हालात में राजा हरी सिंह ने कश्मीर के विलय के पत्र पर साइन किया और भारत से मदद मांगी. 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय फौज श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरी और उसके बाद पाकिस्तानी साजिश को विफल किया जा सका. लेकिन इसी बीच संघर्ष विराम लागू होने के साथ ही कश्मीर का वो हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में रह गया जो आज पीओके के नाम से जाना जाता है’. इतिहास में कश्मीर के मैप में कई मौकों पर बदलाव हुए और हर बार इससे उसकी पहचान बदलती चली गई.
कश्मीर के इतिहास की 9 करवटें-
1. हिंदू संस्कृति का केंद्र कश्मीर…
कश्मीर का इतिहास कश्यप ऋषि के नाम से जोड़ा जाता है. बाद में सम्राट अशोक के काल में कश्मीर की भूमि पर बौद्ध धर्म के प्रचार का जिक्र मिलता है. उसके बाद 9वीं और 12वीं शताब्दी में यह हिंदू संस्कृति के समृद्ध केंद्र के रूप में विकसित हुआ. ललितादित्य, हर्षवर्धन, जयसिंह जैसे प्रमुख हिंदू राजाओं के काल में कश्मीर हिंदू संस्कृति का प्रमुख केंद्र बन गया. हिंदू राजवंश का शासन कश्मीर में 1346 तक चला. 12वीं शताब्दी में लिखे गए कल्हण के संस्कृत ग्रंथ राजतरंगिणी में कश्मीर की संस्कृति और हिंदू परंपराओं का विस्तृत विवरण मिलता है.
2. मुस्लिम शासकों की एंट्री…
कश्मीर के इतिहास का दूसरा चैप्टर 1339 में शुरू होता है जब शाह मीर वहां का शासक बना. शाह मीर ने मुस्लिम शासन की नींव डाली. और अगले ढाई दशकों तक शाह मीर डायनेस्टी का शासन रहा. कश्मीर के कुछ फारसी इतिहासकार शाह मीर को स्वात के शासकों के वंशज के रूप में वर्णित करते हैं तो कुछ इतिहासकार शाह मीर को स्वात के पर्सियन या तुर्क प्रवासियों का वंशज बताते हैं.
3. मुगलों के काल में भारत की मुख्य भूमि से जुड़ाव…
मीर वंश का शासन 1586 में खत्म हुआ जब कश्मीर मुगल शासन के अधीन आ गया. बादशाह अकबर ने कश्मीर को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया. 16 अक्टूबर 1586 को मुगल सिपहसालार कासिम खान मीर ने चक शासक याकूब खान को हराकर कश्मीर पर मुगलिया सल्तनत को स्थापित किया और इस तरह कश्मीर का शासन भारत की मुख्य भूमि के शासन के अधीन आ गया.
4. 1751 में अफगान दुर्रानी शासन आया…
कश्मीर के इतिहास ने 18वीं शताब्दी में फिर एक बड़ी करवट ली जिसका असर आजतक देखा जा रहा है. मुगल साम्राज्य के विखंडन के बाद यहां पठानों का कब्जा हुआ. 1751 में दुर्रानी वंश के शासकों ने मुगल सेना को हराकर दुर्रानी साम्राज्य की स्थापना की. ये मूलतः अफगानी थे. दुर्रानी शासन में मुस्लिम, बौद्ध और हिन्दू सभी कश्मीरियों पर बहुत अत्याचार किए गए. टैक्स की राशि कई गुना कर दी गई और आम लोगों के लिए मुश्किल हालात इस दौर में रहे.
5. रणजीत सिंह की तलवार ने सिख शासन को जमाया…
19वीं सदी की शुरुआत में महाराजा रणजीत सिंह के उभार और लाहौर तक साम्राज्य स्थापित करने के बाद 1819 में कश्मीर सिख शासन के अधीन आ गया.
महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर आक्रमण करके दुर्रानी शासक को हराया. दुर्रानी शासन के अत्याचार से त्रस्त आम लोगों का समर्थन भी महाराजा रणजीत सिंह की सेना को मिला. यहां से फिर कश्मीर का भूगोल और सियासी कैरेक्टर बदलना शुरू हुआ.
6. डोगरा शासन का विस्तार…
कश्मीर के इतिहास में 1846 में एक बड़ा परिवर्तन आया जब अंग्रेज और सिखों की जंग का फायदा उठाकर जम्मू के डोगरा राजाओं ने कश्मीर तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया. ब्रिटिश-सिख युद्ध के बाद जम्मू के डोगरा राजा गुलाब सिंह ने संधि का प्रस्ताव रखा. इस संधि के तहत ब्रिटिशर्स ने राजा गुलाब सिंह को पूरे क्षेत्र का शासक घोषित किया और राजा गुलाब सिंह ने ब्रिटिशर्स द्वारा जीती हुई जमीन को 75 लाख रुपए अदा करके वापस खरीदा. लाहौर संधि के बाद सिख शासन का अंत हुआ और गुलाब सिंह को अंग्रेजों ने पूरे कश्मीर का राजा घोषित किया. डोगरा राजाओं का यह शासन कश्मीर में 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद राजा हरी सिंह द्वारा भारत में विलय के समझौते तक रहा.
7. अक्टूबर 1947 के बाद का बदला हुआ मैप…
पाकिस्तान बना लेकिन मुस्लिम बहुल कश्मीर उसके हाथ नहीं लगा. ये न तो वहां के हुक्मरानों को बर्दाश्त हुआ और न ही मीरपुर से गिलगित तक बैठे मुस्लिम ट्राइबल्स सरदारों को. साजिशों की परतें बुनी जाने लगीं और 22 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन गुलमर्ग’ लॉन्च कर दिया. हजारों की तादाद में लड़ाके कश्मीर के मोर्चे पर भेजे जाने लगा.
राजा हरि सिंह इसके लिए तैयार नहीं थे. हमलावर उरी और बारामूला पर कब्जा कर चुके थे, श्रीनगर की बिजली काट दी गई. कोई और विकल्प न देखकर राजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी लेकिन भारत ने विलय के बिना सेना भेजने से इनकार कर दिया.
आखिरकार 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा ने जम्मू-कश्मीर के विलय के पत्र पर साइन कर दिया और 27 अक्टूबर को भारतीय सेना श्रीनगर में उतरी. पाकिस्तानी हमलावरों को खदेड़ने का मिशन शुरू हुआ. अगस्त 1948 में संयुक्त राष्ट्र ने संघर्षविराम का प्रस्ताव पास किया. सैनिकों को हटाने और जनमत संग्रह का प्रस्ताव रखा गया.
एक जनवरी 1949 को सीजफायर पर बात बन गई लेकिन जहां जंग रुकी वहां नियंत्रण रेखा यानी एलओसी जन्म ले चुका था. कश्मीर का एक-तिहाई हिस्सा पाकिस्तानी कब्जे में रह गया जो आज भी पीओके के रूप में भारत के लिए टेंशन बना हुआ है और पाकिस्तान के लिए आतंकवाद फैलाने के टूल के रूप में इस्तेमाल होता रहा है. जिसे भारत अपना होने का दावा करता है जबकि पाकिस्तान आजाद कश्मीर बताकर और कश्मीर की आजादी का राग छेड़कर दुनिया के सामने कश्मीर मुद्दे का रोना रोता रहता है.
8. 1988 के बाद का आतंक से लहुलूहान कश्मीर…
1971 की जंग में पाकिस्तान की हार और बांग्लादेश बनने की टीस पाकिस्तान को आंतकवाद के रास्ते पर ले आई. तानाशाह जनरल जिया-उल-हक के शासन में पाकिस्तान ने कश्मीर की आजादी के नाम पर आतंकी समूहों को गुप्त मदद और हथियार देना शुरू किया ताकि भारत को उलझाकर रखा जा सके. कश्मीर के युवाओं को बरगलाया गया और हाथों में हथियार थमा दिए गए. साल 1990 के बाद कश्मीर के हालात बदलने लगे.
आतंकी हमलों और कश्मीरी हिंदुओं को टारगेट करने की साजिशों के बीच कभी कुल आबादी का 15 प्रतिशत तक रहे कश्मीरी हिंदू घाटी में 1991 तक महज 0.1 प्रतिशत ही बचे. 14 सितंबर, 1989 को श्रीनगर में आतंकी साजिश के तहत पहली हत्या हुई. वहीं से कश्मीरी हिंदुओं के पलायन की त्रासद कहानी जन्म लेती है. तब से कश्मीर से लाखों लोगों के पलायन, हजारों लोगों की हत्याएं, अलगाववादी आंदोलन, आतंकी संगठन, पाकिस्तान की साजिशें और सीमा की सुरक्षा को लेकर चिंताएं यही कश्मीर की पहचान बन गई थी.
9. 5 अगस्त 2019 के बाद का कश्मीर…
धारा 370 और 35-A को हटाने की बढ़ती मांग के बीच केंद्र की मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर के इतिहास और भूगोल को बदलने वाला बड़ा फैसला लिया. धारा 370 हटाकर कश्मीर को मिले सारे विशेषाधिकार खत्म कर दिए गए. साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के रूप में दो केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया.
कश्मीर में आतंकवाद के खात्मे के लिए सुरक्षाबलों द्वारा ऑपरेशन ऑलआउट भी शुरू किया गया. आतंकी संगठनों के कमांडरों को ताबड़तोड़ ऑपरेशन करके ढेर किया जाने लगा. टेरर फंडिंग के केस में अधिकतर अलगाववादी नेताओं को जेल में डाल दिया गया.
…अब आगे क्या?
पिछले कुछ हफ्तों से कश्मीर में टारगेट किलिंग का एक और दौर शुरू हुआ है. पिछले 26 दिनों में ही 10 टारगेट किलिंग को आतंकियों ने अंजाम दिया है. कश्मीरी पंडितों या हिंदू कर्मचारियों में 1990 के दशक जैसा खौफ फिर देखा जा रहा है. आतंकियों की इस नई साजिश को लेकर नई रणनीति के साथ काम करने पर तमाम सिक्योरिटी एक्सपर्ट जोर दे रहे हैं. पहले की तरह पाकिस्तान की साजिशें अगर सफल हुईं तो नतीजा कुछ भी हो सकता है.
1947 से जारी पाकिस्तान की साजिशों का नतीजा आज हमारे सामने है. पाकिस्तान की इन साजिशों ने धरती पर जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर का क्या हाल करके रखा है. इधर कश्मीर-उधर पीओके का इलाका, बीच में नियंत्रण रेखा. उधर गिलगित-बालटिस्तान अलग, अक्साईचिन का इलाका चीन के पास… यानी एक कश्मीर कई हिस्सों में. कश्मीर के नाम पर 1947 से चार जंगें हो चुकी हैं-1947 का अटैक, 1965 की जंग, 1971 की जंग और करगिल की जंग. ये इतना आसान मसला नहीं है. इतिहासकार इसीलिए सलाह देते हैं कि कश्मीर विवाद को सिर्फ 1947 के परिप्रेक्ष्य में देखने की बजाय 5000 साल पुराने इतिहास और भूगोल के संदर्भ में देखा जाना चाहिए.