विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके अमेरिकी समकक्ष एंटनी ब्लिंकन ने बुधवार को विभिन्न विषयों पर व्यापक वार्ता शुरू की। बातचीत के एजेंडे में अफगानिस्तान में तेजी से बदल रहे सुरक्षा परिदृश्य, हिंद- प्रशांत क्षेत्र में भागीदारी बढ़ाने, कोविड-19 से निपटने के प्रयासों में सहयोग समेत अन्य विषय शामिल हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने दोनों नेताओं के संग की एक तस्वीर के साथ ट्वीट किया, ‘विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रणनीतिक साझेदारी शामिल हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री का स्वागत किया।’
जयशंकर के साथ वार्ता से पहले ब्लिंकन ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल के साथ मुलाकात की और दोनों देशों के द्विपक्षीय तथा क्षेत्रीय मुद्दों समेत अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति पर बातचीत की। ब्लिंकन ने सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों के साथ भी बैठक की। बैठक के बाद ब्लिंकन ने ट्विवटर पर कहा कि अमेरिका और भारत लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा, ‘मुझे आज सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों से मिलकर खुशी हुई। अमेरिका और भारत लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता साझा करते हैं। यह हमारे संबंधों की बुनियाद का हिस्सा है और भारत के बहुलवादी समाज और सद्भाव के इतिहास को दर्शाता है। नागरिक संस्थाएं इन मूल्यों को बढ़ावा देने में मदद करती हैं।’
ब्लिंकन मंगलवार शाम नई दिल्ली पहुंचे। अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि अमेरिका भारत के ‘अग्रणी वैश्विक शक्ति’ के रूप में उभरने का समर्थन करता है और हिन्द- प्रशांत क्षेत्र को शांति, स्थिरता का क्षेत्र बनाने में व्यापक साझेदार के रूप में उसकी भूमिका को स्वीकार करता है। अमेरिका ने दोनों देशों के संबंधों पर एक तथ्य पत्र में कहा, ‘भारत एक अग्रणी वैश्विक शक्ति और हिन्द- प्रशांत तथा इससे भी आगे अमेरिका का महत्वपूर्ण साझेदार है।’
ब्लिंकन और जयशंकर के बीच वार्ता के एजेंडे से वाकिफ सूत्रों ने कहा कि अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति, क्षेत्रीय सुरक्षा, कोविड-19 से निपटने और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भागीदारी को बढ़ावा देने जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी। अमेरिकी सैनिकों की वापसी के मद्देनजर पिछले कुछ हफ्ते में अफगानिस्तान में आतंकी हमले बढ़े हैं। अफगानिस्तान से 31 अगस्त तक सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी हो जाएगी। वार्ता में भारत, अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी से स्थिति जटिल होने और आतंकवाद के वित्तपोषण तथा आतंकी पनाहगाहों पर कार्रवाई के लिए पाकिस्तान पर लगातार दबाव बनाए रखने को भी कह सकता है। भारत और अमेरिका के बीच कारोबार संबंध, निवेश बढ़ाने के साथ स्वास्थ्य, शिक्षा क्षेत्र को लेकर भी बातचीत होने की संभावना है।