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8 मार्च के बाद पता चलेगा, किस गांव में कौन सी जाति का व्यक्ति लड़ सकेगा प्रधानी का चुनाव!

उत्तर प्रदेश में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए नई आरक्षण नीति लागू की गई है. इसके अनुसार पंचायतों के पदों के आरक्षण में बड़े बदलाव की संभावना है. सबसे पहले उन जिला, क्षेत्र और ग्राम पंचायतों को आरक्षित किया जाएगा, जो अभी तक इससे वंचित रही हैं. आरक्षण की रोटेशन प्रणाली रहेगी, लेकिन इसमें तमाम शर्तें लागू की गई हैं. उत्तरप्रदेश के संसदीय एवं ग्राम्य विकास राज्यमंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला ने अभी हाल में 15 फरवरी तक आरक्षण की स्थित स्‍पष्‍ट होने की बात कही थी, लेकिन अभी फैसला नहीं हुआ है.

राज्‍य में विपक्षी समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समेत लगभग सभी राजनीतिक दलों ने पंचायत चुनाव में सक्रिय भागीदारी का एलान किया है, लेकिन बीजेपी नेताओं ने बैठकों और दौरों की शुरुआत भी कर दी है. हाल में उत्‍तर प्रदेश के दो दिवसीय दौरे पर आए बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जे पी नड्डा और संगठन महामंत्री बी एल संतोष ने कई सत्रों में चली बैठकों में पंचायत चुनाव को लेकर कार्यकर्ताओं को बताया और संगठन से लेकर सरकार तक, सभी प्रमुख लोगों की जिम्‍मेदारी और जवाबदेही तय की.

75 जिलों में 3,051 जिला पंचायत वार्ड

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की तारीख अभी तय नहीं हुई है और न ही सीटों के आरक्षण की प्रक्रिया पूरी हुई है, लेकिन बीजेपी ने इस चुनाव के लिए ग्राम सभा स्तर तक अपना संगठनात्‍मक ढांचा बना दिया है. प्रदेश के सभी 75 जिलों में 3,051 जिला पंचायत वार्ड हैं और हर वार्ड में पार्टी की ओर से एक संयोजक की नियुक्ति की गई है. इसके अलावा सभी 826 ब्लॉकों में भी बीजेपी के संयोजक बनाए गए हैं. उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव पार्टी के चुनाव चिह्नों पर नहीं लड़े जाते, लेकिन राजनीतिक दल जिला पंचायत सदस्यों के उम्मीदवारों को खुला समर्थन देकर मैदान में उतारते हैं और जिला पंचायत सदस्य ही जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करते हैं.

नई आरक्षण नीति की घोषणा

इसके अलावा क्षेत्र पंचायत सदस्यों द्वारा ब्लॉक प्रमुख निर्वाचित किए जाते हैं. ब्लाक प्रमुखों का कार्यकाल 17 मार्च को समाप्त होना है, जबकि जिला पंचायत सदस्यों का कार्यकाल 13 जनवरी को ही समाप्त हो गया है. इस बार चुनाव में आरक्षण की नई नीति जारी की गई है जिसके आधार पर वोटिंग कराई जाएगी. नई नीति का सबसे प्रमुख सिद्धांत यह है कि जो ग्राम, क्षेत्र या जिला पंचायतें अभी तक किसी वर्ग के लिए आरक्षित नहीं हुई हैं, उन्हें सबसे पहले उन्हीं वर्गों के लिए आरक्षित किया जाएगा.

रोटेशन सिस्टम से आरक्षण

पंचायत निर्वाचन-2021 में अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग की सर्वाधिक आबादी वाली जिला, क्षेत्र व ग्राम पंचायतों को रोटेशन में आरक्षित किया जाएगा. लेकिन 1995, 2000, 2005, 2010 व 2015 में जो पंचायतें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थीं, वे इस बार अनुसूचित जाति के लिए आवंटित नहीं की जाएंगी. जो पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित रह चुकी हैं, उन्हें पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित नहीं किया जाएगा. उनमें जनसंख्या के हिसाब से अगले स्टेज पर 1995 से लेकर 2015 तक पांच चुनावों में अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों, पिछड़े वर्ग और महिलाओं के लिए आरक्षित रही सीटें इस बार संबंधित वर्ग के लिए आरक्षित नहीं की जाएगी. माना जा रहा है कि इस व्यवस्था से करीब 15 हजार पंचायतों को पहली बार आरक्षण का लाभ मिलेगा.

कब आएगी लिस्ट

परिसीमन का काम समाप्त होने के बाद आरक्षण प्रक्रिया पर काम किया गया है. जहां पर भी पहले आरक्षण लागू था, वहां पर इस बार वह स्थिति नहीं होगी. प्रदेश में 2015 में आरक्षण की जो स्थिति थी वह 2021 में नहीं होगी. पिछले पांच चुनावों के वह पद किसके लिए आरक्षित था उसका संज्ञान लिया जाएगा. इसके साथ ही छह दिन में यानी दो से लेकर आठ मार्च तक आरक्षण को लेकर आपत्ति दर्ज कराई जा सकती है. आरक्षण की सूची इसी तारीख के बाद सामने आ सकती है.