Breaking News

25 साल पहले लगी थी पुलिस की गोली, अब हाईकोर्ट के आदेश पर मिलेगा 15 लाख का हर्जाना

दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने 1997 में कनॉट प्लेस में दिल्ली पुलिस की गोलीबारी के पीड़ित को ब्याज के साथ 15 लाख रुपये का हर्जाना (Rs 15 lakh damages) देने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह (Justice Pratibha M Singh) न केंद्र को 8 सप्ताह के भीतर हर्जाने का भुगतान करने का निर्देश दिया है. अदालत ने कहा कि याचिककर्ता ने अपने जीवन के अहम हिस्से को खो दिया, दाहिने हाथ में विकलांगता का सामना कर रहा है और शरीर में छर्रे के साथ जी रहा है।

उल्लेखनीय है कि घटना के समय पीड़ित की उम्र 20 साल थी और पुलिस की अंधाधुंध गोलीबारी की चपेट में उसकी कार आ गई थी जिससे उसके दो दोस्तों को मौत हो गई थी।

तरुण प्रीत सिंह ने दिसंबर 1998 में याचिका दायर कर कानून प्रवर्तन एजेंसी की गलती और संविधान के अनुच्छेद 21 में दी गई जीवन और स्वतंत्रता की आजादी का उल्लंघन करने का दावा करते हुए एक करोड़ रुपये का हर्जाना दिलाने का अनुरोध किया था. उसने बताया कि वह अपने दो दोस्तों के साथ कार में यात्रा कर रहा था और जब पुलिस की संलिप्तता में गोलीबारी हो रही थी तब उसे कनॉट प्लेस के नजदीक बाराखंभा रोड पर रोका गया था. इस गोलीबारी में उसके दोनों दोस्तों की मौत हो गई जबकि वह गंभीर रूप से घायल हुआ था।

10 पुलिस कर्मियों को आपराधिक मामले में दोषी ठहराया
इस मामले में 10 पुलिस कर्मियों को आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया और उच्चतम न्यायालय ने उनकी उम्र कैद की सजा बरकरार रखी. सिंह की अर्जी पर फैसला देते हुए न्यायाधीश ने उन्हें दो लाख रुपये मुकदमा खर्च देने का भी आदेश दिया जबकि रेखांकित किया कि जो चोट उन्हें लगी वह पुलिस अधिकारियों की वजह से लगी जो आधिकारिक क्षमता से कार्य कर रहे थे और उन्हें इस आपराधिक मामले में उम्र कैद की सजा दी गई है।

पीड़ित पर दो बच्चों और परिवार की महती जिम्मेदारी
अदालत ने 26 अप्रैल को दिए फैसले में कहा, ‘‘वह (याचिकाकर्ता) कपड़े की दुकान में काम करता था और उस पर दो बच्चों और परिवार की देखभाल की जिम्मेदारी थी. जो समय व्यय हुआ उसकी क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती है. जो चोट लगी वह राज्य के कार्य की वजह से लगी और उसमें भी एक तथ्य है कि पुलिस अधिकारियों को आपरधिक कृत्य के लिए दोषी ठहराया गया, न कि निष्क्रियता या लापरवाही के लिए, उन साधारण लापरवाही और निष्क्रियता के मामलों के मुकाबले उच्च मानकों पर विचार करने की जरूरत है.’’

अदालत ने मुआवजे पर फैसले में कहा, ‘‘मुद्रस्फीति को ध्यान में रखते हुए 15 लाख रुपये का मुआवजा तय किया जाता है जिसका भुगतान आठ प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से किया जाए, ब्याज घटना के दिन से भुगतान की तारीख तक का देना होगा. इसके अतिरिक्त दो लाख रुपये याचिकाकर्ता को मुकदमा खर्च दिया जाए।’’