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यूक्रेन में हथियारों की कमी से जूझ रहा रहा रूस! USA के कट्टर दुश्मन से खरीदेगा

रूस का रक्षा मंत्रालय यूक्रेन में चल रहे युद्ध के लिए उत्तर कोरिया से रॉकेट और तोप के गोले खरीदने की तैयारी कर रहा है. एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. अमेरिका के एक अधिकारी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर सोमवार को बताया कि रूस का अलग थलग पड़े देश उत्तर कोरिया का रुख करना दर्शाता है कि, निर्यात पर विभिन्न रोक तथा प्रतिबंधों के कारण रूसी सेना यूक्रेन में हथियारों की आपूर्ति की कमी का सामना कर रही है.

अमेरिका के खुफिया अधिकारियों का मानना है कि रूस भविष्य में उत्तर कोरिया से अतिरिक्त सैन्य उपकरण भी खरीद सकता है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने सबसे पहले इस खुफिया रिपोर्ट के आधार पर एक खबर प्रकाशित की थी. अमेरिकी अधिकारी ने इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी कि रूस, उत्तर कोरिया से कितने हथियार खरीदना चाहता है. यह खबर ऐसे समय में सामने आई है, जब अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन ने रूसी सेना के यूक्रेन में इस्तेमाल करने लिए ईरान से ड्रोन हासिल करने की अगस्त में पुष्टि की थी.

उत्तर कोरिया ने रूस के साथ संबंधों को मजबूत करने की मांग की है और यूक्रेन संकट के लिए अमेरिका को दोषी ठहराया है. उसने यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि पश्चिम की आधिपत्य नीति के खिलाफ रूस की कार्रवाई आत्मरक्षा के लिए की गई है. उत्तर कोरिया ने यूक्रेन के पूर्व में रूसी कब्जे वाले क्षेत्रों के पुनर्निर्माण में मदद के लिए मजदूर भेजने को लेकर भी रुचि दिखाई है. गौरतलब है कि रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने इस साल 26 फरवरी को यूक्रेन के दो क्षेत्रों दोनेत्सक और लुहान्स्क को स्वतंत्र घोषित किया था.

रूस में उत्तर कोरिया के राजदूत ने हाल ही में यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र में रूस समर्थित दो अलगाववादी क्षेत्रों के दूतों से मुलाकात की थी और कामगार भेजने के संबंध में सहयोग का आश्वासन दिया था. रूस और सीरिया के अलावा उत्तर कोरिया इकलौता ऐसा देश था, जिसने जुलाई में दोनेत्सक और लुहान्स्क की स्वतंत्रता को मान्यता दी थी और यूक्रेन में युद्ध के संबंध में रूस का समर्थन किया था. आपको बता दें कि इस साल 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया था. दोनों देशों के बीच जारी युद्ध को 6 महीने से अधिक समय हो चुके हैं और यह कब समाप्त होगा इसको लेकर दोनों देशों के बीच कोई सहमति बनती हुई नहीं दिख रही है.