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मेरठ में मुस्लिम समाज ने दिखाई सांप्रदायिक सौहार्द की अनोखी तस्वीर, ऐसे दी हिंदू महिला को अंतिम विदाई

कोरोनावायरस ने उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हर जगह त्राहि त्राहि मचा दी है. दुख इतनी हद तक बढ़ गया है कि लोगों के आंखों में आंसू तक सूख गए हैं. इस संकट की घड़ी में अपनों ने ही अपनों से मुंह मोड़ लिया है . एक-दूसरे के सुख-दुख पूछने की तो बात दूर रही लोग शवों को कंधा देने तक नहीं आ रहे हैं. वही इस दौर में मुस्लिम समाज ने एक बढ़िया मिसाल पेश की है .आइए जानते हैं पूरी कहानी..

मेरठ से हापुड़ रोड रामनगर के रहने वाली सुषमा अग्रवाल की तबीयत कई दिनों से खराब थी. घर में रहकर ही इलाज करवा रही थी. अचानक बुधवार की सुबह उनकी मृत्यु हो गई. उन की शव यात्रा में हिंदू की जगह मुस्लिम समाज के लोग शामिल हुए. सूरजकुंड में पहुंचकर उन सभी ने मृतका का अंतिम संस्कार करवाया. इस बारे में परवेज ने बताया कि हम सभी पड़ोसी थे और परिवार की तरह मिलजुल कर रहते थे. एक दूसरे के सुख दुख में खड़े रहते थे. इस दौरान शकील, अहमद अंसारी, तस्लीम, जावेद सिद्धकी भी मौजूद थे.

दूसरी घटना

मेरठ के जवाहर नगर में रहने वाले एक युवक की मां अचानक से बीमारी के चलते खत्म हो गई , इसके बाद जब युवक ने रिश्तेदारों को फोन किया तो उन्होंने कंधा देने के लिए मना कर दिया. युवक ने मां की अर्थी को कंधा दिलवाने के लिए 500 रुपए में 2 मजदूर किराए पर किए.

तीसरी घटना

सूरजकुंड श्मशान घाट में बुधवार के दिन एक बेटी ने अपने पिता की चिता को आग दी. इस मार्मिक क्षण को देखकर लोगों की आंखें भर आई. पिता की मृत्यु के बाद बेटी ने सारी क्रियाओं को पूरा किया. इस बारे में मां सुमन ने कहा कि आज मेरी बेटी ने बेटे का काम किया है. इतना कहकर मां जोर-जोर से विलाप करने लगी. बताया गया कि फूल मंडी में रहने वाले वृद्ध धमालू की उल्टी और दस्त के बाद अचानक से मौत हो गई. कहा जा रहा है कि सही उपचार न मिलने के कारण उस बेटी के पिता की मौत हुई.

चौथी घटना

मेरठ के सूरजकुंड श्मशान में बहुत से लोगों का अंतिम संस्कार हुआ. इनमें से एक जगत सिंह भी थे जिन्होंने अपनी बहन की चिता सजाई थी. श्मशान घाट में इतने शव थे कि वहां पर अंतिम संस्कार के लिए जगह भी नहीं है. आचार्य ने उनको इंतजार करने के लिए कहा. बहुत देर इंतजार करने के बाद जगत सिंह खुद ही बहन की चिता को सजाने में लग गया.