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मां दुर्गा के पांडाल में दिखा मजदूरों का दर्द, मूर्तिकारों ने नहीं बनाई मां दुर्गा की मूर्ति, ये है बड़ी वजह

कोरोना काल में अप्रवासी मजदूरोंं को जिस पीड़ा का सामना करना पड़ा है, उसे शायद ही हम और आप शब्दों में तब्दिल कर बयां कर सके, लेकिन भले ही हम और आप इनके दर्द व पीड़ा को अपने शब्दों मे न ढाल सके, मगर पश्चिम बंगाल के मूर्तिकारों नेे नवरात्र के मद्देनजर रखते हुए अपनी कला के माध्यम से प्रवासी मजदूरों के दर्द को बयां करने की जहमत उठाई है। यकीन मानिए.. इन मूर्तिकारों ने वर्षों पुरानी अपनी रवायतों को बदलते हुए मां दुर्गा के पंडाल से ही  मां दुर्गा की  मूर्ति को गायब कर दिया। मूर्तिकारों ने मां दुर्गा की मूर्ति न लगाकर अप्रवासी मजदूर की मूर्ति बनाई है। मूर्तिकारों ने ऐसा महज मां दुर्गा की मूर्ति के साथ ही नहीं अपितु सरस्वती, लक्ष्मी सहित अन्य देवियों की मूर्तियों के साथ भी किया।

वर्षों पुरानी इन रवायतों में परिवर्तन को लेकर मूर्तिकारों का कहना है कि ऐसा हमने प्रवासी मजदूरों  की पीड़ाओं को प्रदर्शित करने के लिए किया है। इस मूर्ति में प्रवासी महिला मजदूर के हाथ में उसका बच्चा भी दिख रहा है। मूर्तिकारों ने कला के माध्यम से इसमें अपने भाव को प्रकट करने का काम किया है।  उन पीड़ाओं.. उन दर्दोंं.. उन तकलीफों को बखूबी इन मूर्तिकारों ने अपनी मूर्ति में उतारने का काम किया है, जो इन्होंने लॉकडाउन के दौरान झेले हैं। गौरतलब है कि लॉकडाउन के दौरान जब पूरा देश वीरान पड़ चुका था। लोगों की आमद से गुलजार रहने वाली गलियों में सन्नाटा अपने शबाब पर पहुंच गया था। तब ऐसी स्थिति में मजदूरों को असहनीय पीड़ाओंं को सामना करना पडा था। बिना किसी वाहन के लोग बस  अपने घर जाने की मुराद में पैदल ही बड़े-बड़े शहरों से रवाना हो चुके थे।

याद दिला दें कि पश्चिम बंगाल के मूर्तिकार अपनी मूर्ति बनाने की कला को लेकर पूरे देश ही नहीं अपितु समस्त विश्व में विख्यात हैं। यहां के मूर्तिकार न महज पश्चिम बंगाल बल्कि बिहार , झारखंड, ओडिशा सहित देश के अन्य प्रदेशों  में भी मूर्ति बनाने का काम करते हैं और अपनी कला के लिए विख्यात रहते हैं। इस मूर्ति को बनाने वाले मूर्तिकार कहते हैं कि  ्अप्रवासी मजदूर महिलाओं को अपने देवी का दर्जा दिया है। इस पंडाल  के थीम को राहत नाम दिया गया है।