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बिहार के चुनावी पिच पर बाहुबलियों का दबदबा, जानें किसने खेली अच्छी पारी, किसका गिरा विकेट

अब तय हो चुका है कि बिहार के सियासी कुर्सी पर कौन होगा विराजमान। एक बार फिर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी कुर्सी बचा पाने सफल रहे हैं। लोगों का कहना है कि यह सब मोदी के जादू की वजह से संभंव हो पाया है। पिछली बार की तुलना में इस बार जेडीयू का वोट शेयर घटा है तो वहीं  बीजेपी का घटा है। बीजेपी की नैया के सहारे ही जेडीयू ये मंझधार पार करने में सफल रही है। उधर, 2015 की तुलना में इस बार महागठबंधन राजग को कांंटे की टक्कर देता हुआ नजर आया है। वहीं, इस बार चुनाव में कई ऐसे बाहुबलियों के बेटे व बेटियां भी चुनावी में मैदान में अपनी दमखम दिखाने के लिए खड़े हुए थे, जो अभी जेल मेें सजा काट रहे हैं, तो चलिए  इस रिपोर्ट में  जानने की कोशिश करते है कि किस -किस  बाहुबलियों के बच्चे अपनी सीट बचा पाने में सफल रहे.

रणधीर सिंह 
वैसे तो हमेशा से बाहुबलियों का दबदबा बिहार विधानसभा चुनाव में देखने को मिला है, मगर इस बार बाहुबलियों की गैर मौजूदगी में उनके  बच्चे अपना सियासी करतब दिखा पाने में सफल रहे हैं। उधर, बाहुबली प्रभुनाथ की गैर मौजूदगी में उनके बेटे रणधीर सिंह राजद की टिकट से अपनी सीट बचा  पाने मे नाकाम रहे। वे छपरा विधानसभा सीट  से चुनाव लड़ रहे थे, मगर वहांं जनता ने उन्हें वोट देना मुनासिब न समझा।

अनंत सिंह 
उधर, बाहुबली विधायक अनंत सिंह इस चुनाव में मोकमा से अपनी सीट बचा पाने  में  सफल रहे  है। वे इस बार राजद की  टिकट से चुनाव लड़ रहे थे। चुनावी विशलेषकों का कहना है कि तेजस्वी के सियासी छवि का फायदा उठाते हुए वे यहां  से अपनी  जीत दर्ज  करने  में कामयाब रहे है।

चेतन आनंद 
इस बिहार चुनाव में  बाहुबलियों का दबदबा अपने चरम पर  दिखा है। इसी कड़ी में मोहन आनंद के बेटे चेतन आनंद भी अपनी सीट बचा पाने में सफल रहे हैं। वे  राजद की टिकट से शिवहर से चुनाव लड़  रहे थे।

लवली आनंद  
इस कड़ी में लवली आनंद को सहरसा  सीट से हार का सामना करना पड़ा है। वे इस बार सहरसा सीट से चुनाव लड़ रही थी। शुरूआती  रूझानों में उनकी स्थिति दुष्कर नजर आ रही थी, लेकिन  बाद में वे चुनाव जीतने  में सफल रहे।

रीतलाल  यादव  
राजद प्रत्याशी रीतलाल यादव दानापुर सीट से चुनाव जीतने में  कामयाब रहे हैं।