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बाहरी दांव उल्टा पड़ता देख ममता ने लिया यू-टर्न, अब चला यूपी-बिहार वाला दांव

बंगाल की बाजी जीतने के लिए सियासी दल हर दिन नया दांव चल रहे हैं। जय श्रीराम, नेताजी, विवेकानंद और जय काली के बाद अब बंगाल की सियासत में लिट्टी चोखा और ठेकुआ की बात हो रही है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल में बीजेपी को मात देने के लिए पूर्वी यूपी और बिहार की फेमस डिश लिट्टी चोखा का दांव चला है।

बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी और उनकी पार्टी बीजेपी को बाहरी बता रही थी, लेकिन ममता का बाहरी दांव जैसे ही उल्टा पड़ता दिखा उन्होंने यू टर्न ले लिया। हिंदी भाषी वोटरों में टीएमसी के खिलाफ बढ़ती नाराजगी को देखते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी डैमेज कंट्रोल में जुट गई हैं। हिंदी भाषी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए ममता बनर्जी ने बड़ा दांव चल दिया है।

बंगाल में 14-15 फीसदी हिंदी भाषा-भाषी मतदाता हैं, जबकि सूबे में गैर बंगाली आबादी करीब डेढ़ करोड़ है। दावा किया जाता है कि बंगाल की 294 विधानसभा सीटों में से करीब 40-45 सीट पर हिंदी भाषी लोग प्रभाव डाल सकते हैं। उत्तर बंगाल की 54 सीटों में से करीब 15 सीटों पर हिंदी भाषी निर्णायक भूमिका में हैं, जबकि बाकी बंगाल में 30-35 सीटों पर हिंदी भाषी लोगों का दबदबा है। ममता बनर्जी ने इन्हीं वोटरों को अपनी तरफ करने के लिए यूपी-बिहार वाला दांव चला है।

बंगाल के लोकसभा चुनाव में हिंदी भाषा-भाषी फैक्टर अहम भूमिका निभा चुके हैं। सूबे की कुल 42 लोकसभा सीटों में लगभग 12 सीटों पर हिंदी भाषा-भाषियों के वोट उम्मीदवारों की जीत-हार तय करती है। अब आकड़ों के जरिए समझाते हैं कि बंगाल के किस जिले में कितने फीसदी हिंदी भाषी वोटर हैं।

इन जगहों पर दबदबा

जिला हिंदी भाषी 
नॉर्थ कोलकाता 38 फीसदी
हावड़ा 40 फीसदी
बैरकपुर 40 फीसदी
श्रीरामपुर 25 फीसदी
हुगली 18 फीसदी
आसनसोल 20 फीसदी

जिलों में बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लोगों का दबादबा है और ममता बनर्जी को ये अच्छे से पता है कि इन इलाकों में लिट्ठी चोखा और ठेकुआ पसंद किया जाता है। अर्जुन सिंह और दिनेश त्रिवेदी की बात छोड़ दें तो बंगाल में हिंदी भाषी लोगों की अच्छी खासी तादात होने के बावजूद राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों में हिंदी भाषियों का प्रतिनिधित्व न के बराबर है।

बंगाल में 34 सालों के लेफ्ट शासनकाल के दौरान बांग्ला भाषा के अलावा किसी दूसरी भाषा को वो दर्जा नहीं मिला जो मिलना चाहिए था, लेकिन ममता सरकार पिछले कुछ सालों से हिंदी भाषा से जुड़े लोगों के लिए बहुत कुछ कर रही है।

बंगाल ऐसा राज्य है, जहां बड़ी संख्या में यूपी, बिहार, राजस्थान, गुजरात और पंजाब के लोग दशकों से रह रहे हैं। बंगाल इनकी कर्मभूमि बन चुकी है। ऐसे में ये लोग हिंदी और संस्कृत भाषा के सम्मान के लिए लड़ते रहते हैं और टीएमसी की सरकार ने इन्हीं हिंदी भाषियों को लुभाने के लिए कई तरह के काम किए हैं।

टीएमसी ने क्या किया?

हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना

महापर्व छठ पर सरकारी छुट्टी

हिंदी प्रकोष्ठ का गठन किया

हिंदी अकादमी की घोषणा

दलित साहित्य अकादमी की घोषणा

हालांकि बीजेपी इसको ममता सरकार का चुनावी स्टंट बता रही है। 2019 के चुनाव में हिंदी भाषी लोगों ने बड़े पैमाने पर बीजेपी का साथ दिया था, जिसकी वजह से बंगाल में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया था। बीजेपी के हाथ से हिंदी भाषी बेल्ट छीनने के लिए ममता बनर्जी ने यूपी बिहार के लोगों को अपनी तरफ करने का दांव चला है।

बंगाल में एक तरफ बीजेपी ने ममता का किला गिराने के लिए पूरा जोर लगा दिया है तो दूसरी तरफ बीजेपी के विजयरथ पर रोक लगाने के लिए टीएमसी भी ब्रेकर बनाने में जुटा है। बीजेपी जय श्रीराम के नारे का तोड़ ममता बनर्जी ने लिट्टी चोखा और ठेकुआ के जरिए निकाला है। ऐसे में देखना ये है कि चुनाव में किसका दांव भारी पड़ता है।