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एक बार फिर आज इतिहास बनाएगी अयोध्या, जब पहली बार कोई प्रधानमंत्री आएगा राम जन्मस्थान पर

वैसे तो अयोध्या अपने आपमें इतिहास है। सप्तपुरियों में एक मानी जाने वाली इस नगरी को पांच बैकुंठों में एक साकेत से भी सुंदर नगरी की संज्ञा स्वयं भगवान राम ने दी है। माना जाता है कि महात्मा राजा मनु के लिए स्वयं भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने इसे धरती पर उतारा था।

इसे विडंबना कहा जाए या संयोग कि इस नगरी में स्थित श्री रामजन्मभूमि स्थल पर मंदिर-मस्जिद का विवाद खड़ा हुआ और वह इतना लंबा खिंचा कि कई तारीखें इतिहास बनती और बनाती चली गईं। ठीक वैसे ही जैसे 5 अगस्त की तारीख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों श्रीरामजन्मभूमि मंदिर की शुरुआत के साथ अयोध्या के इतिहास में जुड़ने जा रही है।

अयोध्या के साथ एक और संयोग जुड़ा है। हनुमानजी कहां प्रकट हुए और उनका मूल स्थान कहां है, यह अलग बात है, लेकिन अयोध्या की धरती से उनका नाता अपने जैसा है। अयोध्या में हनुमान गढ़ी श्रद्धा का केंद्र यूं ही नहीं है। यह बताती है कि अयोध्या में राम के सेवकों व सहयोगियों को भी स्वामियों से कम महत्व नहीं मिलता है। तभी तो प्रधानमंत्री का कार्यक्रम संयोगों की ऐतिहासिकता का एक और अध्याय लिखने जा रहा है।

ऐसा नहीं है कि आजादी के बाद देश के प्रधानमंत्री अयोध्या गए नहीं। पर, अलग-अलग प्रायोजन से और इस स्थान से दूरी बनाते हुए। पिछले पांच दशकों में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी बतौर प्रधानमंत्री यहां आए तो लेकिन, जन्मस्थान से दूरी रखी।

इंदिरा गांधी 1966 में नया घाट पर बने सरयू पुल का लोकार्पण करने आईं फिर आचार्य नरेन्द्र देव विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में आईं। इसके बाद 1979 में हनुमान गढ़ी दर्शन करने आईं। राजीव गांधी भी प्रधानमंत्री रहते दो बार और पूर्व प्रधानमंत्री के रूप में एक बार आए।

उन्होंने 1984 में चुनावी सभा को यहां संबोधित किया और फिर 1989 के लोकसभा चुनाव के अभियान की फैजाबाद (अयोध्या) से शुरुआत कर प्रतीकात्मक रूप से राम नाम के सरोकारों का सियासी लाभ लेने की कोशिश की। माना जाता है कि फैजाबाद (अयोध्या) से चुनाव प्रचार शुरू करने और रामराज्य की घोषणा के पीछे राजीव गांधी की मंशा 1986 में जन्मभूमि का ताला खुलवाने और नवंबर 1989 में शिलान्यास कराने के कामों का परोक्ष्य रूप से राजनीतिक लाभ लेने की थी।

पर, कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद राजीव कारसेवा आंदोलन की तपिश के बीच 1990 में सद्भावना यात्रा के सिलसिले में यहां आए। पर, जन्मभूमि मंदिर से दूर रहे। भाजपा की केंद्र में दो बार सरकार बनी और दोनों प्रधानमंत्री सीधे अयोध्या ही आए।

मोदी से पहले अटल बिहारी वाजपेयी 2003 में अयोध्या आए थे। पर, मंदिर के निमित्त किसी सीधे अनुष्ठान में शामिल होने के बजाय इस आंदोलन के प्रमुख व शीर्ष चेहरे महंत रामचंद्र परमहंस के अंतिम संस्कार में शामिल होने। यह  बात दीगर है कि तब उन्होंने सरयू तट पर महंत की चिता के सामने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण की उनकी इच्छा पूरी करने की घोषणा की थी।

योगों की ऐतिहासिकता
यह सर्वविदित है कि हनुमान जी ने खुद को भगवान राम का दास ही कहलाना पसंद किया है। लेकिन, राम-रावण युद्ध में एक तरह से उनकी भूमिका किसी सारथि और सहयोगी जैसी थी। संयोग ही है कि 1990 में लालकृष्ण आडवाणी के सहयोगी व सारथि के रूप में सोमनाथ से अय़ोध्या के लिए चले नरेंद्र मोदी दूसरी बार जब इन स्थानों पर पहुंचेंगे तो सारथि से रथी की भूमिका में आ चुके हैं।

मोदी इससे पहले 1992 में श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर दर्शन करने आए थे, लेकिन तब भी वह सारथि की भूमिका में थे डॉ. मुरली मनोहर जोशी के साथ। अवसर था, एक विधान-एक निशान के संकल्प और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति की मांग को लेकर यात्रा का।

पांच अगस्त… तब अनुच्छेद 370, अब मंदिर निर्माण की शुरुआत…
नरेंद्र मोदी जब पहली बार 1992 में अयोध्या आए थे, तब उन्होंने कुछ लोगों के पूछने पर कहा था, दूसरी बार अयोध्या तब आऊंगा, जब मंदिर बनने की स्थितियां होंगी। संयोग देखिए कि यह काम उन्हीं के हिस्से में आया।

खास बात यह है कि मोदी यह काम शुरू करने तब आ रहे हैं, जब वह जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति करा चुके हैं। उनकी उस यात्रा के दोनों संकल्पों के साकार होने की तारीख 5 अगस्त ही बनने जा रही है। 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 की विदाई हुई और इस 5 अगस्त को रामलला के मंदिर निर्माण की शुरुआत ।