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आखिर क्यों पहना जाता है जनेऊ, जानिए इसे धारण करने का नियम एवं मंत्र

आप सभी सनातन परंपरा के बारे में जानते होंगे। जी दरअसल सनातन परंपरा के 16 संस्कारों में ‘उपनयन’ संस्कार का बहुत महत्व है। कहा जाता है यह संस्कार अमूमन 10 साल से कम उम्र में बालकों का करवाया जाता है। जी हाँ और इसके तहत उसे सूत से बने तीन पवित्र धागों वाला यज्ञोपवीत धारण करता है। आप सभी को बता दें कि यज्ञोपवीत या फिर कहें जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति को कई नियमों का पालन करना पड़ता है। जैसे यदि गलती से जनेऊ अपवित्र हो जाए तो उसे तुरंत उतार कर दूसरा नया जनेऊ धारण करना पड़ता है। ऐसा भी कहा जाता है एक बार यज्ञोपवीत संस्कार हो जाने के बाद आजीवन जनेऊ धारण करना होता है और इसको हर सनातनी हिंदू धारण कर सकता है। हालाँकि किसी भी बालक का यज्ञोपवीत तभी करना चाहिए जब वह इसके नियम का पालन करने योग्य हो जाए। अब हम आपको बताते हैं यज्ञोपवीत का धार्मिक एवं वैज्ञानिक नियम।

 

 

जनेऊ धारण करने का आध्यात्मिक महत्व- तीन धागे वाले जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति को आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। कहा जाता है जनेऊ के तीन धागे को देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण का प्रतीक माना जाता है। इसी के साथ इसको सत्व, रज और तम और तीन आश्रमों का भी प्रतीक माना जाता है। विवाहित व्यक्ति या फिर कहें गृहस्थ व्यक्ति के लिए छह धागों वाला जनेऊ होता है। इन छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के लिए माने जाते हैं। वहीं हिंदू धर्म में किसी भी धार्मिक या मांगलिक कार्य आदि करने के पूर्व जनेऊ धारण करना जरूरी है। बिना जनेऊ के किसी भी हिंदू व्‍यक्ति का विवाह संस्‍कार नहीं होता है।

जनेऊ  धारण करने का नियम- कहा जाता है यज्ञोपवीत को हमेशा बाएं कंधे से दाये कमर पर पहनना चाहिए और इसे मल-मूत्र विसर्जन के समय दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ साफ करने के बाद ही कान से नीचे उतारना चाहिए। जी हाँ और यज्ञोपवीत के इस नियम के पीछे उद्देश्य यह है कि, मल-मूत्र विसर्जन के समय यज्ञोपवीत कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। यज्ञोपवीत को घर में किसी के जन्म या मरण के दौरान सूतक लगने के बाद बदल देने की परम्परा है। वहीं कुछ लोग यज्ञोपवीत में चाभी आदि बांध लेते हैं। हालाँकि यज्ञोपवीत की पवित्रता और मर्यादा को कायम रखने के लिए कभी भूलकर भी ऐसा नहीं करना चाहिए।

जनेऊ पहनने का मंत्र- ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।

जनेऊ उतारने का मंत्र- एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।